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दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को
मोह ढक देता है जागृति को
जगत् जानता ही नहीं न कि यह रेशमी चादर से लपेटा हुआ है सारा ? खुद को जो पसंद नहीं है, वही कचरा इस रेशमी चादर में लपेटा हुआ है । ऐसा तुम्हें लगता है या नहीं लगता ? इतना समझे तो निरा वैराग्य ही आ जाए न? इतना भान नहीं रहता, इसीलिए तो यह जगत् ऐसा चल रहा है न ? ऐसी जागृति किसी को होगी इन बहनों में से ? कोई इंसान सुंदर दिख रहा हो, उसे छीला जाए तो क्या निकलेगा ?
प्रश्नकर्ता : खून-मांस वगैरह सब निकलेगा।
दादाश्री : मांस-पीप ऐसा सब ही न ? और रूप कहाँ गया फिर ? ऐसा सब सोचा नहीं है, इसीलिए यह मोह है न? !
प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा ही लगता है।
दादाश्री : हाँ, देखो न कैसा फँसाव! सोचो तो फँसाव जैसा नहीं लगता, बहन ? ! बुद्धि से बात सही लगती है न, कि भीतर यह सारी गंदगी है? हर एक में गंदगी होगी या कुछ साफ भी होगे, मोम जैसे ?
प्रश्नकर्ता : हर एक में गंदगी है।
दादाश्री : इन दादाजी में भी गंदगी है। दादाजी यानी 'दादा भगवान' वे अलग हैं और ये 'ए. एम. पटेल' अलग हैं। पटेल में