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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : लेकिन उस परमाणुओं का तो आप कहते हैं न, कि पुराना लेकर आए हैं, इसलिए उसी अनुसार तो असर होता होगा न?
दादाश्री : मेरा क्या कहना है कि असर हो रहा हो तो उससे भी आप अलग रहो, उसके दुश्मन बन जाओ ताकि उससे मित्रता न रहे, वर्ना वे पिला-पिलाकर आपको वापस गिरा देंगे!
जब हमने विषय की बात की, तब इन्होंने सबसे पहले यही कहा कि विषय का सेवन गलत है, ऐसा हमें आज ज्ञान हुआ। लोगों को तो 'यह गलत है' ऐसा भी ज्ञान नहीं है। अरे, भान ही नहीं है न! जानवर में और इनमें फर्क कितना है? कुछ प्रतिशत का ही, ज्यादा फर्क नहीं है। मतलब 'यह गलत है' ऐसा जानना तो पड़ेगा न?!
प्रश्नकर्ता : विषयों का सेवन गलत है, ऐसा तो ज़्यादातर हिन्दुस्तान के सभी लोग जानते हैं।
दादाश्री : नहीं, सभी को पता नहीं है। अभी तो आपको भी पता नहीं है न! 'क्या गलत है?' उसका पता नहीं चलता। आप अपनी समझ के अनुसार उसे गलत मानते हो कि 'ओहोहो, मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी' आप ऐसा समझते हो। अरे, मियाँ-बीवी लाख राजी हों, फिर भी उसमें क्या जोखिम है, वह आप नहीं समझोगे। और शादीशुदा और हरहाया में क्या फर्क है? वह आप नहीं समझोगे। शादीशुदा या हरहाया सब जोखिमदारी ही है। इसमें जोखिमदारी का भान है किसी को? जोखिमदारी का भान तो सिर्फ मैं ही अकेला जानता हूँ। अगर इंसान हरहाया शब्द नहीं समझे तो वह फिर कहाँ जाएगा? नर्कगति का अधिकारी बनेगा। शादी करनी ही हो तो करो न, दस के साथ शादी करो। उसके लिए कौन मना करता है! लेकिन हर कहीं दृष्टि बिगाड़ते हैं, वह जोखिम है और वह तो हरहाए पशु जैसी अवस्था कहलाती है। अगर देह हरहाया नहीं होता तो मन हरहाया होता है। अत: अभी