Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 449
________________ ३९६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) बाकी नहीं रखते। पंद्रह साल की उम्र से लेकर चालीस साल की उम्र तक के सभी दोष लिखकर दे देते हैं, ये लड़के, लड़कियाँ वगैरह सभी जाहिर कर देते हैं। जिसे दोष निकालने हों, उसे हमारे पास आलोचना करनी चाहिए। जिससे बहुत बड़ा दोष हुआ हो और वह दोष निकालना हो और मेरे पास आलोचना करे तो आलोचना करते ही उसका मन मेरे पास बंध जाता है। फिर हम भगवान की कृपा उतारते हैं और उसे साफ कर देते हैं। हमारे पास आलोचना लिखकर लाते हैं। जितने-जितने दोष वह खुद जानता हो, वे सभी दोष उसमें लिख लेता है। वह भी एक जन नहीं, हज़ारों लोग! अब उन दोषों का हम क्या करते हैं? उसका कागज़ पढकर, उस पर विधि करके वापस उसके हाथ में दे देते हैं। उसे कितना विश्वास! वर्ल्ड में कहीं नहीं हुए हों, ऐसे दोष लिखते हैं! दोष पढ़कर ही आपको ऐसा लगे कि अरेरे, ये तो कैसे दोष?! । ऐसे हज़ारों लोगों ने खुद के दोष लिखकर दिए है, स्त्रियों ने भी सभी दोष खुलकर बताए हैं, संपूर्ण दोष। सात पति किए हों तो, सातों के नाम के साथ लिखा होता है, बोलो अब हमें क्या करना चाहिए यहाँ? बात ज़रा भी किसी को पता चले तो वह आत्महत्या कर ले, तो हमारी बहुत जोखिमदारी आती है। सही आलोचना की नहीं है लोगों ने। वही मोक्ष में जाने से रोकता हैं। गुनाह हुआ तो हर्ज नहीं है। सही आलोचना हो तो कोई दिक्कत नहीं आएगी। आलोचना तो ग़ज़ब के पुरुष के सामने करनी चाहिए। खुद के दोषों की कहीं पर आलोचना की है जिंदगी में? किसके सामने आलोचना करे? और आलोचना किए बिना चारा नहीं। जब तक आलोचना नहीं करोगे तो उसे माफ कौन करवाएगा?

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