Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 448
________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं - 2 - १७) तक जो गलतियाँ हुई है, उनका प्रतिक्रमण कर-करके साफ कर देना है और उसे माफ करवाने का हथियार मेरे पास है । उसके बाद नये सिरे से साफ रहेगा। आलोचना, आप्तपुरुष से ही प्रश्नकर्ता : आपके पास ऐसे लोग आते हैं कि जो उनके खुद के पिछले हुए दोषों की आप से आलोचना करते हैं तो आप उन्हें छुड़वा देते हैं ? ३९५ दादाश्री : मुझ से आलोचना करे तो मेरे साथ अभेद हुआ कहलाएगा। हमें तो छुड़वाना ही पड़ेगा। आलोचना करने का अन्य कोई स्थान ही नहीं है, यदि स्त्री को बताने जाए तो स्त्री चढ़ बैठे, मित्र को बताने जाए तो मित्र चढ़ बैठे, खुद अपने आप से कहने जाए तो खुद ही चढ़ बैठता है उल्टा इसलिए किसी को नहीं बताता और हल्का नहीं हो पाता इसलिए हमने आलोचना का सिस्टम (पद्धति) रखा है। प्रश्नकर्ता : इस जन्म में हमने जो दोष किए हैं, ज्ञानीपुरुष के समक्ष उनके लिए माफी माँग सकते हैं ? दादाश्री : हाँ। वे दोष फिर कमज़ोर पड़ जाएँगे। जब ज्ञानीपुरुष से आलोचना करे, तब वह खुद कहे तो उत्तम । हमें रूबरू कहे। सभी की मौजूदगी में हमसे कहे, वह ऑर्केस्ट्रा क्लास फिर आप कहो कि नहीं, मैं अकेले होऊँगा, तब दादा से कहूँगा, वह फर्स्ट क्लास। और फिर आप कहो कि दादा को मुँह से नहीं बताऊँगा, कागज़ में दूँगा, तो सेकन्ड क्लास । और आप कहो कागज़ में भी नहीं, मैं मन में ही घर पर कर लूँगा, वह थर्ड क्लास। जिसे जिस क्लास में बैठना हो, उसे छूट है लेकिन सभी को मेरे साथ एकता आ जाती है क्योंकि हार्ट 'प्योर' ही है न! मुझे तो अभेद ही लगते हैं सभी और वे खुद का जो एफिडेविट (शपथ पत्र, हलफनामा ) लिखते हैं, उसमें एक भी दोष लिखना

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