Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 441
________________ ३८८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) तो आश्चर्य है! ऐसे ब्रह्मचर्य का यदि कोई पालन करे न तो उनके दर्शन से ही कल्याण हो जाएगा क्योंकि ज्ञानी हैं और साथ ही ब्रह्मचारी भी हैं, दोनों चीजें एक साथ हैं। उन्हें कितना आनंद बर्तता है!! आनंद ज़रा सा भी कम नहीं होता। प्रश्नकर्ता : ये लोग शादी करने के लिए मना करते हैं, तो वह अंतराय कर्म नहीं कहलाएगा? दादाश्री : हम यहाँ से भादरण जाएँ तो क्या इससे इन अन्य गाँवों के साथ हमने अंतराय डाले? उसे जहाँ अनुकूल हो, वहीं वह जाएगा। अंतराय कर्म तो किसे कहते हैं कि आप किसी को कुछ दे रहे हों, और मैं कहूँ कि नहीं, उसे देने जैसा नहीं है, तब मैंने आपको रोका तो मुझे वह चीज़ नहीं मिलेगी। मुझे उस चीज़ का अंतराय पड़ा। इसमें कर्मबंधन के नियम प्रश्नकर्ता : यदि ब्रह्मचर्य का ही पालन करना हो तो उसे कर्म कह सकते हैं? दादाश्री : हाँ, उसे कर्म ही कहते हैं! उससे कर्म तो बंधते हैं! जब तक अज्ञान है, तब तक कर्म कहलाता है! वह फिर ब्रह्मचर्य हो या अब्रह्मचर्य हो। ब्रह्मचर्य से पुण्य मिलता है और अब्रह्मचर्य से पाप मिलता है! प्रश्नकर्ता : कोई ब्रह्मचर्य की अनुमोदना कर रहा हो, ब्रह्मचारियों को पुष्टि दे, सबकुछ उन्हीं के लिए। सभी तरह से उन्हें रास्ता कर दे, तो उसका फल क्या? दादाश्री : फल का हमें क्या करना है? हमें एक अवतारी होकर मोक्ष में जाना है, अब फलों को कहाँ रखेंगे? उस फल में तो सौ स्त्रियाँ मिलेंगी, ऐसे फल का हम क्या करेंगे? हमें फल नहीं चाहिए। फल खाना ही नहीं है न अब!

Loading...

Page Navigation
1 ... 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482