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अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७)
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काया से पालन करते हैं। बाहर के लोगों द्वारा मन से तो पालन किया ही नहीं जा सकता। वाणी से और देह से सभी पालन कर सकते हैं। अपना यह ज्ञान है न, उसकी वजह से मन से भी पालन कर सकते हैं। मन-वचन-काया से यदि ब्रह्मचर्य पालन करे तो उसके जैसी महान अन्य कोई शक्ति उत्पन्न नहीं हो सकती। उस शक्ति से फिर हमारी आज्ञा का पालन किया जा सकता है। वर्ना ब्रह्मचर्य की वह शक्ति नहीं हो तो आज्ञा का पालन कैसे करेगा? ब्रह्मचर्य की शक्ति की तो बात ही अलग है न?!
ये ब्रह्मचारी तैयार हो रहे हैं और ये ब्रह्मचारिणियाँ भी तैयार हो रही हैं। उनके चेहरे पर नूर आएगा, फिर लिपस्टिक और पाउडर लगाने की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। हेय! सिंह का बच्चा बैठा हो, ऐसा लगेगा। तब समझ जाएँगे या नहीं कि कुछ है! वीतराग विज्ञान कैसा है कि यदि पचा तो शेरनी का दूध पचाने के बराबर है, तब वह सिंह के बच्चे जैसा लगेगा, वर्ना बकरी जैसा दिखेगा! यह तो वीतराग विज्ञान है, इसलिए यों ही सिंह जैसा दिखता है। मुझे तो अभी भी ये लोग कहीं सिंह जैसे नहीं दिखते, लेकिन इन लोगों का पुरुषार्थ ज़बरदस्त है न! और वास्तविक पुरुषार्थ है, इसलिए वह आ ही जाएगा। सबकुछ प्राप्त हो सकता है और वह भी फिर ज्ञान सहित प्राप्त होगा!
ये युवा स्त्री, युवा पुरुष ब्रह्मचर्य व्रत लेते हैं, तो उन्हें कैसा सुख बर्तता होगा कि इसमें से छूटने का भाव होता है? इन सभी लड़कों को कैसा सुख बर्तता होगा? ऐसे पाँच ही लड़के तैयार हो जाएँ तो, वे पूरे हिन्दुस्तान में सभी जगह भ्रमणा करेंगे, हर एक बड़े शहेर में भ्रमण करें तो बहुत काम हो जाएगा। कहीं पर भी भाव ब्रह्मचर्य नहीं होता। बाहर के लोग जिस ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वह भी वचन का और काया का, मन का नहीं। आत्मज्ञान के बिना मन का ब्रह्मचर्य नहीं रह सकता। अत: यह तो अपना साइन्टिफिक विज्ञान है, दर असल विज्ञान है। यह