Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 434
________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७) ३८१ नहीं सकता। पिछले जन्म में भावना की हो, उसे तो रह ही सकता है, और अपने साधु-आचार्यों को रहता ही है न! लेकिन अन्य सामान्य लोगों की तो बिसात ही नहीं न! जहाँ निरंतर जलन में जलते रहते हैं, वहाँ पर कोई ब्रह्मचर्य की बातें करने जाएगा क्या? और करेगा तो कोई सुनेगा भी नहीं! लेकिन ऐसे काल में अपने यहाँ यह नया ही निकला है। ब्रह्मचर्य का ऐसा रास्ता निकलेगा, ऐसा तो मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। इस जगत् का कल्याण होनेवाला हो, तभी ऐसा मिलता है न? वर्ना ऐसा सब कहाँ से मिलेगा? हमने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हमें ऐसा चाहिए या हमें ऐसा करना है। अभी तो, लड़के सामने से ब्रह्मचर्य के लिए आ रहे हैं। ऊर्ध्व रेत हो न, तो काम हो जाएगा। उसके बाद जो वाणी निकलती है, उसके बाद जो संयम सुख आता है, उसकी तो बात ही अलग है। इसलिए मैं ऐसा करना चाहता हूँ इन ब्रह्मचारियों के लिए। उन्हें समझा-समझाकर मोड़ने की कोशिश करके और ज्ञान के अनुसार ब्रह्मचर्य की ओर मुड़ जाएँ, ऐसा कर देता हूँ, और मुड़ सकते हैं। प्रश्नकर्ता : मुड़ सकते हैं, यह शब्द तो योग्य नहीं लग रहा है क्योंकि मुड़ सकते हैं, दबा भी सकते हैं, उछल भी सकते हैं, लेकिन ज्ञान से आप उन पर कृपा करें तो बहुत अच्छा हो जाता है। दादाश्री : हाँ, कृपा ही। वह तो ये शब्द मुँह से बोलने पड़ते हैं। बाकी कृपा से होता है। प्रश्नकर्ता : कृपा के बिना वह साध्य नहीं है, दादा। दादाश्री : और तैयार हो जाएँगे तो इस देश का कुछ कल्याण कर सकेंगे। तैयार हो जाएँगे सभी। ब्रह्मचर्य के लिए दादा ने यह कितनी सुंदर बाड़ बना दी

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