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अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं - 2 - १७)
ही है और वह भी सिर्फ देखनेमात्र से ही बहुत बाधक है । व्यवहार में इतना ही भय है, इतना ही भय सिग्नल है । अन्य कहीं पर भय सिग्नल नहीं है। इसलिए लड़कों को कह रखा है न, कि स्त्री की तरफ देखना भी मत और देख लो तो उसका उपाय दिया है। साबुन लगाकर धो देना । इस काल में सबसे बड़ा पोइज़न हो तो वह विषय ही है। इस काल के मनुष्य ऐसे नहीं हैं कि जिन्हें ज़हर नहीं चढ़े । ये तो कमज़ोर हैं बेचारे । जैसा मनचाहे वैसे कहीं भी घूमोगे तो ज़हर चढ़ेगा या नहीं ? ! यह तो आज्ञा में रहते हैं इसलिए ज़हर नहीं चढ़ता लेकिन अगर आज्ञा में नहीं रहे तो ? एक ही बार आज्ञा टूटी कि पोइज़न फैल जाएगा, तेज़ी से ! इनकी बिसात ही नहीं न!
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किसी की बहन पर दृष्टि बिगाड़ी है ?
मुझे सब से ज़्यादा चिढ़ इस बात की रहती है कि किसी पर भी दृष्टि कैसे बिगाड़ सकता है तू ? तेरी बहन पर कोई खराब दृष्टि डाले तो तुझे कैसा लगेगा? उसी तरह अगर तू किसी की बहन पर दृष्टि बिगाड़ेगा तो ? लेकिन इन लोगों को ऐसा विचार नहीं आता होगा न ?
प्रश्नकर्ता : ऐसा विचार आता हो तो ऐसा कोई करेगा ही नहीं न?
दादाश्री : हाँ, कोई करेगा ही नहीं। लेकिन इतनी मूर्च्छा है न! इन लड़कों में तो इस ज्ञान के बाद बहुत बदलाव आ गया तो मुझे आनंद होगा न ! नहीं तो मैं इन्हें बुलाऊँ भी नहीं क्योंकि मुझे तो चिढ़ आती है। अपने यहाँ तो चौदहवें साल में तो शादी करवा देनी चाहिए । चौदह साल की बेटी और अठारह साल का बेटा, इस तरह शादी करवा देनी चाहिए । लेकिन यह तो नई ही तरह का हो गया । यह भी कुदरत ने किया है। इंसान थोड़े ही कुछ करता है ? पहले तो सात साल में ही शादी करवा