Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 425
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) देते थे। उससे फिर उन लोगों की दृष्टि और कहीं भी नहीं जाती थी और वह लाइफ कितनी अच्छी ! बच्चे भी कितने अच्छे होते थे ! एक जैसे बच्चे ! ३७२ प्रश्नकर्ता : यह एक बड़ा पॉइन्ट है। जिनकी दृष्टि नहीं बिगड़ती, उनके बच्चे एक जैसे होते हैं। दादाश्री : और उसी से परंपरागत संस्कार आते थे। यह तो मार्केट मटिरियल जैसा हो गया है। बाज़ारू माल नहीं होता ? वैसा!! ऐसा तो हो ही कैसे सकता है? यदि स्त्री एक पतिव्रत पालन करे और पति एक पत्नीव्रत पालन करे तो दोनों दर्शन करने योग्य कहलाएँगे । इसलिए अपने यहाँ तो बेटे-बेटियों की जल्दी शादी करवा देनी चाहिए, अगर मेल खाए तो। मेल नहीं खाए तो भी तैयारी जल्दी शादी करवाने की रखना। यह माल रखने जैसा नहीं है तो फिर स्लिप होने से बचेगा, वर्ना यह तो बिगड़ता ही जा रहा है। हमें तो बचपन से ही यह पसंद नहीं है कि लोगों ने इसमें सुख कैसे मान लिया है? मुझे ऐसा लगता है कि यह कैसा है ? इन लोगों को तो खेलने के लिए जापनीज़ खिलौने चाहिए। खेलने के लिए ये जीवित खिलौने चाहिए, लेकिन जीवित खिलौने को मारोगे तो फिर काट लेगा न ?! यह सब तो, कपड़े से ढका हुआ है इसलिए मोह होता है। हमें तो बचपन से ही थ्री विज़न की प्रैक्टिस हो गई थी इसलिए हमें तो बहुत वैराग्य आता रहता था । बहुत ही घिन आती थी । ऐसी चीज़ों में ही इन लोगों को आराधना रहती है। यह तो किस तरह का कहलाएगा ? प्रतिक्रमण ही एक उपाय प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा गया है कि ज्ञान के बाद कुदृष्टि जोखिम है। अब कुदृष्टि वह चार्ज भाव है या डिस्चार्ज परिणाम है?

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