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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : हाँ। उगता और ढलता, ये दो भेद पड़ जाने के बाद कोई दिक्कत नहीं। उसके बाद विचारों का संघर्ष नहीं
होगा।
दादाश्री : अब ऐसा कोई सिखाता ही नहीं है न! मैं यह महत्वपूर्ण बात बता रहा हूँ। इसमें संघर्षण नहीं होगा और काम हो जाएगा।
मन बिगड़े तब प्रश्नकर्ता : आपका 'ज्ञान' लेने के बाद ब्रह्मचर्य लें तो अच्छा है न?
दादाश्री : ये सभी लड़के यहाँ बैठे रहते हैं, ये ‘स्वरूप ज्ञान' में भी हैं और ब्रह्मचर्य में भी हैं। हर तरह से उन्हें सुख रहता है। 'ज्ञान' के साथ ब्रह्मचर्य हो, उसकी तो बात ही अलग है न! अतः ब्रह्मचर्य कैसा होना चाहिए? मन-वचन-काया से होना चाहिए। मन में विषय से संबंधित विचार तक नहीं आना चाहिए
और ज़रा सा भी विचार आए तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेते हैं। ये सभी लड़के मन-वचन-काया से संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करते हैं। विचार तो आते ही हैं इंसान को। जो विचार आते हैं, वे डिस्चार्ज हो रहे हैं। अत: खुद की इच्छा के विरुद्ध आते हैं, लेकिन विचार से जो दाग़ लगे उन्हें, हमने जो साबुन दिया है उससे धो देते हैं।
प्रश्नकर्ता : बार-बार दाग़ धोएँगे तो कपड़ा फट जाएगा न?
दादाश्री : नहीं, हमारा साबुन ही ऐसा होता है कि कपडा फट नहीं जाता। दोष होते ही 'शूट ऑन साइट' हो जाता है!
प्रश्नकर्ता : कई लोग ब्रह्मचर्य व्रत की आज्ञा लेते हैं, लेकिन मन बिगड़ता रहे तो उसका कोई अर्थ ही नहीं न?
दादाश्री : मन बिगड़ा कि सबकुछ बिगड़ा। फिर भी ये