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अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७)
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है ही नहीं' अरे तेरी औरत नहीं है, फिर क्यों तू इसमें सुख मानकर बैठा है? कभी अगर खाना मिला हो तो उसमें उसका अभिप्राय रहा करता है, उसके बजाय अगर वह अभिप्राय बदल जाए तो हर्ज नहीं है। उस अभिप्राय का रहना, वह भयंकर गुनाह है। यह विषय तो सबसे खराब चीज़ है, ऐसा निरंतर अभिप्राय रहेगा तो आपका आज का गुनाह थोड़ा-बहुत चौदह आने जितना माफ हो जाएगा। लेकिन जिसे ऐसा अभिप्राय बरतता है, कि विषय में कोई हर्ज नहीं है तो वह बेचारा तो मारा ही गया! क्यों मारा जाएगा कि अभी भी उसे अभिप्राय है कि इसमें कोई हर्ज नहीं
ये ब्रह्मचारी लड़के मुझसे कह जाते हैं कि अभी भी हमें तो अंदर ऐसे खराब विचार आते हैं और ऐसा सब होता हैं। तब मैंने कहा कि इसके लिए प्रतिक्रमण करना, लेकिन इसके लिए बहुत परेशान मत होना क्योंकि भगवान तो क्या कहते हैं कि अभिप्राय अब्रह्मचर्य का है या ब्रह्मचर्य का? ब्रह्मचर्य पालन करना अच्छा है या नहीं? तब जो लोग ऐसा कहते हैं कि 'ब्रह्मचर्य तो हमसे नहीं हो सकेगा,' तो उन्हें एक ओर बिठा देते हैं और जो कहते हैं कि 'हमें अब्रह्मचर्य बिल्कुल भी नहीं चलेगा।' उन्हें दूसरी ओर बिठा देते हैं। इस तरह दो ही विभाग करते हैं। तुम्हें ब्रह्मचर्य का अभिप्राय रहता है इसलिए तुम ब्रह्मचर्य विभाग में बैठ गए।
अब तुम्हें सभी संसारी विचार आएँ तब भगवान क्या कहते हैं कि 'तुम्हें क्या पसंद है?' तब कहते हैं कि 'ब्रह्मचर्य।' इसलिए अब तुम ब्रह्मचर्य विभाग में बैठे हो लेकिन बाद में ब्रह्मचर्य का अभिप्राय बदल नहीं जाना चाहिए। यानी ब्रह्मचर्य के विरुद्ध होने के विचार आएँ, वहाँ तक मत पहुँचना। यानी कि उन विचारों पर कंट्रोल रखना। अत: मुख्यतः तो तुम्हारा अभिप्राय नहीं बदलना चाहिए। मैं क्या कहना चाहता हूँ, वह तुम्हारी समझ में आया न?