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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : हाँ, पूरी तरह से हिम्मत आ रही है।
दादाश्री : 'दादा' की आज्ञा का पालन तुम से ठीक से नहीं हो पाता? अपना धर्म आज्ञा पालन करने का है। फिर जो माल निकले, उससे हमें क्या लेनादेना? कॉलेज के आखिरी साल में पढ़ रहा हो और किसी मौज-शौक में पड़ गया और फ़ेल हो गया तो उसके बाद पूरे साल उदास रहे तो क्या फायदा होगा? अगले साल क्या होगा? पहले नंबर से पास होगा? ऐसा डिप्रेशन आ जाए तो सात साल तक भी पास नहीं हो सकेगा। इसलिए यह भूल जाना कि मैं फ़ेल हो गया और नये सिरे से और नई तरह से दोबारा तैयारी करना। जो कर्म हो चुके है, उन्हें छोड़ो न! एकलौता बेटा मर जाए तो क्या हमेशा रोएगा? भले इंसान, दो दिन रोना हो तो रो और फिर बाज़ार में कुल्फी खा। यानी कि अगर फेल हो गए तो नये सिरे से पढ़ना शुरू कर देना, पुराना सब भूल जाना। मतलब नये सिरे से आज्ञा में रहो ठीक से! हमें कहना है, 'चंद्रेश, यह तो बहुत गलत किया।' इतना हमें कह देना है, बस। बाद में फिर से हमें आज्ञा में ही रहना है। उसके बाद हम क्यों चूकें ? और 'चंद्रेश' तो अपना पड़ोसी है न? फर्स्ट नेबर, फाइल नंबर वन है न? और दिवाला भी चंद्रेश का निकला न? 'तेरा' दिवाला तो नहीं निकला न? या दोनों ने साथ में दिवाला निकाला है? चंद्रेश दिवालिया हो जाए, तो उससे तुम्हें क्या लेना देना? लेकिन हम यह जो कह रहे हैं, वह तुम्हारे वापस पलटने के लिए। फिर उसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए कि दादाजी ऐसा कह रहे थे कि दिवाला निकले तो हर्ज नहीं है। यह तो, यहाँ से बचाने जाएँ तो वहाँ फिसल पड़ता है, तो इसका कब अंत आएगा? तुम कह देना कि 'चंद्रेश दिवालिया हो गया है, अब फिर से दिवालिया मत होना!' तुम लोगों से कहा है न, फाइल नंबर वन, फर्स्ट नेबर है। तो आज्ञा में रहना वही अपना धर्म