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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
लिए किसी को नहीं कहता। इस कलियुग में ब्रह्मचर्य तो करने जैसी चीज़ ही नहीं है । इस कलियुग में सर्वत्र जहाँ-तहाँ विचार ही मैले हैं और तुम्हारी तो टोली ही अलग है, इसलिए चल सकता है। तुम सभी तो एक विचार के और तुम सभी साथ में रहो तो तुम सभी को ऐसा ही लगेगा कि अपनी दुनिया बस इतनी ही है, दूसरी अपनी दुनिया नहीं है, शादीवाली दुनिया अपनी नहीं है। अगर दो-तीन शराबी हों तो वे साथ बैठकर पीते हैं और फिर ऐसा समझते हैं कि हम तो तीन ही है, अब कोई है ही नहीं! जैसे-जैसे उन्हें चढ़ती जाती है, वैसे-वैसे फिर क्या बोलता है? मैं, तू और तू ! हम तीन ही लोग, बस । इस दुनिया के मालिक हम सब ही हैं ।
ज्ञानी मिटाए अनंतकाल के रोग
तुम पवित्र ( प्योर, साफ) हो तो कोई नाम देनेवाला नहीं है ! पूरी दुनिया विरोध करे, फिर भी मैं अकेला (तुम्हारे साथ) हूँ। मुझे पता है कि तुम साफ हो, तो मैं किसी से भी निपट लूँगा, ऐसा हूँ। मुझे शत प्रतिशत भरोसा होना चाहिए। तुम तो दुनिया से नहीं निपट सकोगे, इसलिए मुझे तुम्हारा रक्षण करना पड़ता है। इसलिए मन में घबराना मत, ज़रा भी मत घबराना । हम साफ हैं, तो दुनिया में कोई नाम देनेवाला नहीं है ! इस दादा की बात दुनिया में कोई भी करे तो दादा दुनिया से निपट लेंगे। क्योंकि बिल्कुल साफ इंसान हैं, जिनका मन ज़रा भी नहीं बिगड़ा है। तुम्हें साफ रहना है। तुम साफ हो तो तुम्हारे लिए ये दादा दुनिया से निपट लेंगे। लेकिन अगर भीतर से तुम मैले हो, तो मैं कैसे निपटूंगा ? वर्ना फिर शादी कर लो । दो में से एक डिसीज़न अपने आप ले लो। मैं इसमें हेल्प करूँगा और शादी करोगे तो उसमें भी तुम्हें हेल्प करूँगा। हेल्प करना वह मेरा फ़र्ज़ है। बाद में यदि तुम्हारा निश्चय नहीं डिगेगा तो मैं तुम्हें वाणी का वचनबल दूँगा । इस सत्संग में रहोगे तो तुम यह कर सकोगे, इसकी शत प्रतिशत गारन्टी !
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