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फिसलनेवालों को उठाकर दौड़ाते हैं (खं-2-१६)
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दादा हैं, तब तक सभी रोग निकल जाएँगे! क्योंकि दादा में कोई रोग नहीं है! इसलिए जिसे जो रोग निकालने हों, वे निकल जाएँगे। मुझमें पोल होती तो तुम सबका काम नहीं हो पाता! विषय दोष होना, वह सबसे बड़ा जोखिम है! सभी अणुव्रत, सभी महाव्रत टूट जाते हैं!! करोड़ों जन्मों के बाद भी विषय छूटे ऐसा नहीं है। यह तो सिर्फ ज्ञानीपुरुष के पास उनकी आज्ञा में रहने से छूट सकता है। और हमें यदि विषय के ज़रा से भी विचार आ रहे होते तो भी आपका विषय नहीं छूटता। लेकिन ज्ञानीपुरुष को कभी विषय का विचार तक नहीं आता। इसलिए जैसा ब्रह्मचर्य पालन करना हो वैसा कर सकोगे। सच्चा भाव है न! सच्चा निमित्त और सच्चा भाव, ये दो यदि मिल जाएँ तो इस दुनिया में उसे कोई नहीं तोड़ सकता।
__ ज़बरदस्त कृपा पात्र हो सकते हो, ऐसा है।। तुम तुम्हारे घर रहो और दादा उनके घर रहें, फिर भी तुम पर कृपा रह सकती है, लेकिन तार जोड़ने आने चाहिए! एक तार में भी ज़रा सी गलती होगी, तो पंखे को दबाते रहोगे फिर भी पंखा नहीं घूमेगा। इसलिए फ्यूज़ बदल लो! तार में तो ज्यादा कुछ नहीं बिगड़नेवाला, शायद कभी सड़ जाए, लेकिन फ्यूज़ बदलना पड़ता है। यह तो काम निकाल लेने जैसा अवसर आया है।
इस पतंग की डोर तुम्हारे हाथ में सौंप दी! अब पतंग उलट जाए तो ऐसे डोर खींचना। यह तो जब तक पतंग की डोर हाथ में नहीं थी, तब तक अगर पतंग उलट भी जाए तो हम क्या कर सकते थे? अब तो पतंग की डोर हाथ में आ गई है तो फिर दिक्कत नहीं है।