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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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या नुकसान को क्या करना है? हमें तो इतना ही देखना है कि आत्मा मज़बूत रहता है या नहीं?
___ इस शरीर में से जो निकलता है, वह सारा संडास का माल। संडास का माल बनता है, तब बाहर निकलता है। तब तक बाहर नहीं निकलता। जब तक इस शरीर का माल हो न, तब तक बाहर नहीं निकलता।
विचार : मंथन : स्खलन संडास का माल निकल ही जाता है समय आने पर, रहता नहीं है। अभी कोई विषय का विचार आया, तुरंत तन्मयाकार हुआ तब अंदर माल झड़कर नीचे चला जाता है। और फिर इकट्ठा होकर निकल जाता है एकदम। लेकिन विचार आते ही अगर तुरंत उखाड़ दे तो फिर अंदर झड़ेगा नहीं, ऊर्ध्वगामी हो जाएगा। वर्ना विचार आते ही झड़ जाता है। अंदर इतना विज्ञान है पूरा !!
प्रश्नकर्ता : विचार आते ही।
दादाश्री : ऑन द मोमेन्ट। बाहर नहीं निकलता। लेकिन अंदर अलग हो जाता है वह। जो बाहर निकलने लायक हो गया, वह शरीर का माल नहीं रहा।
प्रश्नकर्ता : तो क्या प्रतिक्रमण करने से वापस ऊर्ध्वगमन होगा?
दादाश्री : विचार आए और विचार में तन्मयाकार नहीं हो, विचार को देखते रहे तो ऊर्ध्वगमन होगा। विचार आए और तन्मयाकार हो जाए, तो फिर अलग हो जाता है, तुरंत।
प्रश्नकर्ता : अलग होने के बाद प्रतिक्रमण कर ले तो वापस ऊपर आएगा क्या? ऊर्ध्वगमन नहीं हो सकता?
दादाश्री : प्रतिक्रमण करते हैं तो क्या होता है? कि तुम