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ब्रह्मचर्य प्राप्त करवाए ब्रह्मांड का आनंद (खं-2-१४)
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तो सबकुछ पता चले, ऐसा है। शायद अंदर मान पड़ा होगा तो वह भी निकल जाएगा। क्योंकि किसी प्रधान को बाहर सब अच्छा हो और घर में दु:खी हो तो उसे सत्ता दी जाए तो वह एकदो लाख खा जाएगा, लेकिन बाद में अघा जाएगा न? और अपना तो यह विज्ञान है। इसलिए अब जो मान है, वह निकाली माल है न! वह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा, फिर भी तब तक पूरी जागृति रखनी पड़ेगी। कोई गाली दे, अपमान करे फिर भी मान नहीं जागना चाहिए। कोई मारे फिर भी मान क्यों जागे? हमें तो जानना चाहिए कि सात मारी या तीन? ज़ोर से मारी या धीरे से? ऐसे जानना है। खुद के स्वभाव में आना तो पड़ेगा न?! आपको तो सुबह में तय करना है, कि आज पाँच अपमान मिलें तो अच्छा और फिर पूरे दिन में एक भी नहीं मिला तो अफसोस रखना, तब मान की गाँठ पिघलेगी। जब अपमान हो, उस समय जागृत हो जाना।
___ अगर एक ही सच्चा इंसान होगा तो जगत् कल्याण कर सकेगा! संपूर्ण आत्मभावना होनी चाहिए। एक घंटे तक भावना करते रहना और अगर टूट जाए तो जोड़कर वापस शुरू कर देना। यह भावना की है तो भावना का जतन करना! लोगों का कल्याण हो इसलिए त्यागी वेष में, दीक्षा लेने की इच्छा है। अगर मन नहीं बिगड़ता हो तो फिर दीक्षा लेने में हर्ज नहीं।
जगत् का कल्याण अधिक से अधिक कब हो सकता है? त्याग मुद्रा हो, तब अधिक होता है। गृहस्थ मुद्रा में जगत् का कल्याण अधिक नहीं हो सकता, ऊपर-ऊपर सब होता है। लेकिन भीतर में सारी पब्लिक प्राप्ति नहीं कर पाएगी! ऊपर-ऊपर के सभी, बड़े-बड़े वर्ग के लोगों को प्राप्ति हो जाती है, लेकिन पब्लिक को नहीं हो पाती। त्याग अपने जैसा होना चाहिए। अपना त्याग, वह अहंकारपूर्वक नहीं है न?! और यह चारित्र तो बहुत उच्च कहलाता है!