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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
है, तब तक ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा कब होगा? कि जैसेजैसे आप आगे बढ़ते जाओगे, वैसे ही ऐसे संयोग कम होते जाएँगे, वैसे-वैसे उस जगह पर भूमिका अपने आप ही आएगी। ज्ञानी की भूमिका सेफ साइडवाली होती है! उनके सभी संयोग सुगम होते
हैं।
प्रश्नकर्ता : उनका व्यवस्थित उस तरह गढ़ा हुआ होता है?
दादाश्री : हाँ, वैसा गढ़ा हुआ होता है। लेकिन वह एकदम से ऐसे नहीं हो सकता। आपको तो अभी कई मील पार करने के बाद वह रोड आएगी। सभी जगह आकर्षण नहीं होता। तुझे कितनी जगह पर आकर्षण होता है? क्या 'सौ' में से अस्सी जगह आकर्षण होता है?
पूर्व में चूके, उसके ये फल हैं प्रश्नकर्ता : वह कैसा है कि यों दृष्टि गई कि अंदर खड़ा हो जाता है, और दृष्टि नहीं गई हो तो कुछ भी नहीं। लेकिन एक बार यों देख लिया हो तो फिर अंदर चंचल परिणाम खड़े हो जाते हैं।
दादाश्री : दृष्टि, वह वस्तु 'हम' से अलग है। तो फिर दृष्टि गई, उससे हमें क्या फर्क पड़ा? लेकिन हम अंदर चिपकना चाहें, तब दृष्टि क्या करे बेचारी?! होली की जब पूजा करने जाते हैं, तब वहाँ अपनी आँखें झुलस जाती हैं क्या? यानी होली को देखने से आँखें नहीं झुलसतीं। क्योंकि उसे हम सिर्फ देखते ही हैं। उसी तरह इस दुनिया में किसी भी जगह पर आकर्षण हो, ऐसा है ही नहीं, लेकिन अगर खुद के अंदर ही यदि कुछ टेढ़ा है तो आकर्षण होगा! |
प्रश्नकर्ता : दो प्रकार की दृष्टि है, उसमें एक दृष्टि ऐसी है कि हम देखते हैं कि चमड़ी के नीचे खून-मांस और हड्डियाँ हैं, उसमें क्या आकर्षण? और दूसरी दृष्टि यह कि उसमें शुद्धात्मा