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'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५)
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दादाश्री : जिसे शंका है, उसी को ऐसा सब हो जाता है। जिसे शंका नहीं है, उसे कुछ नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : तभी तो यह सब जो हुआ है, वह शंका के आधार पर ही हुआ है? अभी इस चंद्रेश की जो अवस्था है, पूरी शंका के आधार पर ही है?
दादाश्री : तो और किसके आधार पर? प्रश्नकर्ता : इसीलिए खुद पर शंका हुई है उसे।
दादाश्री : ऐसा है न, 'चंद्रेश क्या कर रहा है' उसे देखते रहना है। उसे कह सकते हैं कि 'तू नालायक है' ऐसा वैसा सब कह सकते हैं। तन्मयाकार नहीं हो जाना, तो शक्ति उत्पन्न हो जाएगी बाद में। 'ज्ञान' अज्ञान में नहीं घुस जाना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : कई बार तो यह भी डिसाइड नहीं हो पाता कि यह ज्ञान है या अज्ञान है?
दादाश्री : डिसाइड हुए बिना रहेगा ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : बार-बार अगर उस तरफ खिंच रहा हो तो खुद को शंका रहती है कि यह ज्ञान में है या अज्ञान में है।
दादाश्री : जो खिंच रहा है उसे भी, जिसे खींच रहा है, 'जो' वह सब 'जानता' है, वह 'ज्ञान' है। अगर जाने नहीं तो फिर ज्ञान हट गया है, ऐसा कहा जाएगा, अज्ञान में घुस गया।
प्रश्नकर्ता : कैसे? दादाश्री : ऐसे तू अज्ञान में घुस जाता है फिर?
प्रश्नकर्ता : यही होता है, खुद के प्रति भी ऐसा हो जाता है कि यह चंद्रेश बिगड़ गया। खुद को ऐसा लगता है कि मैं बिगड़ गया। यों खुद के प्रति तिरस्कार होता है, कि ऐसा? कहाँ