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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
। तो उसे रोकने के पुरुषार्थ करना चाहिए ?
यह हमें पता है, फिर भी वह हो जाता लिए क्या प्रयत्न करना चाहिए ? कौन सा
दादाश्री : ऐसा है न । जब तक जिस गुनाह का फल नहीं जानते, तब तक वह गुनाह होता रहता है। कुएँ में कोई क्यों नहीं गिरता ? ये वकील कम गुनाह करते हैं। ऐसा क्यों ? इस गुनाह का यह फल मिलेगा, ऐसा वे जानते हैं । इसलिए गुनाह का फल जानना चाहिए। पहले जाँच कर लेनी चाहिए कि गुनाह का क्या फल मिलेगा? ' यह गलत कर रहा हूँ, इसका क्या फल मिलेगा ?' यह जाँच कर लेनी चाहिए ।
इस दुनिया का ऐसा नियम है कि जो गुनाह के फल को पूरी तरह से जानते हैं, वे गुनाह करेंगे ही नहीं ! कोई गुनाह कर रहा है मतलब वह गुनाह के फल को पूरी तरह से जानता ही नहीं ! हम नर्क का फल जानते हैं, इसीलिए तो हम कभी भी नर्क का फल आए, ऐसी बात हो तो, यह शरीर टूट जाए फिर भी नहीं करते। तूने नर्क का स्वरूप सुना तो तुझे कैसा लग रहा है अब ? इसलिए यह जान लेना कि कर्म का फल क्या ? क्योंकि अगर गुनाह हो रहा है तो अभी तक यह समझा ही नहीं कि 'इसका फल क्या है ?' इसलिए प्रकृति कौन सी बात में गलत कर रही है, यह किसी से पूछना चाहिए । ज्ञानीपुरुष हों तो उन्हें पूछना चाहिए कि, 'अब मुझे यहाँ पर क्या करना चाहिए?' और उसके बावजूद प्रकृति से वह हो जाए तो माफी माँगनी चाहिए ! जो प्रकृति हमें पछतावा करवाए, उस प्रकृति का विश्वास ही कैसे कर सकते हैं?
प्रश्नकर्ता : प्रगति को रूंधनेवाले अंतरायों में से कैसे निकलें ?
दादाश्री : वह सब निकल जाएगा, कृपा से सबकुछ निकल जाएगा। कृपा यानी दादाजी को राज़ी रखना वह। दादा अपने लिए जो माथापच्ची कर रहे हैं, उसका फल अच्छा आएगा, अच्छे प्रतिशत आए तो दादा राज़ी! दादा को और क्या चाहिए ? दादा कहीं पेड़ा