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[१६] फिसलनेवालों को उठाकर दौड़ाते हैं सिर-माथे पर रखना ज्ञानी को, अंत तक
पंद्रह साल के लिए जेल में डाल दिया हो तो क्या करोगे? 'दादा की जेल में ही हूँ', कहना। कुछ तो शूरवीरता रखो न! शूरवीरता! एक ही जन्म। मोक्ष में जाना है यह तो। अन्य सभी जगह यही झंझट चल रही है न। 'इसमें क्या सुख है?' और अगर एक बाड़ तुम पार कर लोगे मेरे कहे अनुसार, तो फिर मुक्त हो जाओगे। एक ही बाड़ को पार करने की ज़रूरत है। तुझे दादा हाज़िर रहते हैं या नहीं रहते? तुझे दादा हाज़िर रहते हैं तो फिर क्या दुःख है? अरे, इसमें ऐसे तो कौन से सुख हैं कि इतनी पकड़ में आ गया है! दादा तो ऐसे है कि हर तरह से रक्षा करें, मूलतः इसका यह आड़ाई (अहंकार का टेढ़ापन) का स्वभाव है न, वह नहीं छूटता न! सपने में आ जाएँ, तब से कल्याण हो गया। सपने में ऐसे ही कोई चीज़ आती है क्या?! इसलिए इस दुनिया का जो होना हो वह हो, लेकिन इन दादा को नहीं छोड़ना है और दादा की इस एक आज्ञा का पालन कर लेना तो वश हो जाएगा सबकुछ। और वर्ना अगर तुझे शादी करनी हो तो बता न, हर्ज नहीं है। कर देंगे फिर रास्ता।
आज्ञा में नहीं रह सके तो क्या किसी को जेल में थोडे ही डालते हैं? वर्ना ऐसे यदि जेल में डालना पड़े तो हमें कितनों को जेल में डालना पड़े? सभी को डाल देना पड़ेगा।