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'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५)
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दादाश्री : ऐसा क्यों? कि आत्मा पर प्रीति नहीं है, ब्रह्मचर्य पर प्रीति है। लेकिन ब्रह्मचर्य तो पुद्गल है। आत्मा खुद तो ब्रह्मचारी ही है, निरंतर ब्रह्मचारी है! यह तो हम बाहर का उपाय करते हैं और वह भी कुदरती तरीके से अगर डिस्चार्ज के रूप में आया हो, तभी हो पाएगा। इसलिए ब्रह्मचर्य कोई मुख्य चीज़ नहीं है। उसे मुख्य मानेंगे तो आत्मा का मुख्यत्व चला जाएगा। मुख्य वस्तु तो आत्मा है, बाकी कुछ भी मुख्य है ही नहीं। बाकी के ये सब तो संयोग हैं और फिर संयोग वियोगी स्वभाव के हैं। आत्मा
और संयोग दो ही हैं, और कुछ है ही नहीं जगत् में। अतः मुख्यत्व एक मात्र आत्मा में आ गया, बाकी सब को संयोग कह दिया। संयोग को अच्छा-बुरा करने जाओगे तो बुद्धि इस्तेमाल की
और बुद्धि इस्तेमाल की तो आत्मा दूर चला जाएगा। अपना साइन्स कितना अच्छा है!
ब्रह्मचर्य व्यवहार के अधीन है। निश्चय तो ब्रह्मचारी ही है न! आत्मा तो ब्रह्मचारी ही है न!