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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
पहलेवाला चंद्रेश और कहाँ अभी का चंद्रेश। क्या ऐसा सब है? कई बार तो प्रतिक्रमण भी नहीं हो पाते।
दादाश्री : कैसे होगा लेकिन? ज्ञान अगर अज्ञान में घुस जाए फिर कैसे होगा? अलग रहोगे तो होगा।
प्रश्नकर्ता : ज्ञान, अज्ञान में घुस जाता है, तो उसका इतना लंबा पीरियड है। तो अब उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : कुछ भी नहीं करना है।
प्रश्नकर्ता : तो यह जो अज्ञान में घुस गया है, उसे भी देखना है?
दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : यह बिगड़ गया है, उसे सुधारना तो पड़ेगा ही
दादाश्री : तो सत्संग में ज़्यादा जाना चाहिए। सत्संग में ज़्यादा यानी रेग्युलर।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वह तो देखा कि सत्संग में आते हैं, तब बहुत क्लियर हो जाता है।
दादाश्री : हाँ, लेकिन सत्संग में ज़्यादा पड़े रहना पड़ेगा। उतना टाइम निकालकर रखना चाहिए, सत्संग के लिए।
'देखना' 'जानना' आत्मस्वरूप से प्रश्नकर्ता : देखने से पुद्गल शुद्ध हो जाता है, वह क्या विषय के लिए भी करेक्ट है?
दादाश्री : विषय में सब को ऐसा रह नहीं सकता न! सिर्फ विषय ही ऐसा है जिसे देख नहीं सकता। चूक जाता है। बाकी सब में देख सकता है तुरंत। विषय के अलावा बाकी सब में