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'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५)
दादाश्री : नहीं, उसमें तो दूसरा शुरू कर दो वापस। देखने बैठो, भले ही कुछ भी करो । उपयोग कहीं और रखो, किसी काम में लगा दो ।
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प्रश्नकर्ता : आखिर में ये गाँठें तो देखनी ही पड़ेंगी या फिर ऐसा ज़रूरी नहीं है ?
दादाश्री : ऐसा है न, अभी तो सेकन्डरी स्टेज से काम लेना, तुम से सहन नहीं हो रहा हो तो। यानी कि तुम दूसरा उपयोग रखना ताकि वह स्टेज अपने आप गुजर जाए। जब कभी वह वापस आएगी, तब देखना तो पड़ेगा एक दिन, तब उस दिन अभी के बजाय काफी आसान रहेगा बिल्कुल सहज रूप से। कि हाथ लगाते ही चले जाएँगे सारे ।
प्रश्नकर्ता : मतलब उस समय ज्ञाता - दृष्टा आसानी से रह
पाएँगे!!
दादाश्री : हाँ, सरलता से । बल्कि तुझे देखना अच्छा लगेगा। हल्का हो जाएगा बिल्कुल और तुझ में शक्ति बढ़ गई होगी, उस समय। अभी तो तू निर्बल हो गया है
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प्रश्नकर्ता : यानी जब तक देखने की शक्ति नहीं है, तब तक ऐसा करना पड़ेगा।
दादाश्री : यानी अभी किसी भी उपाय से, उसमें से अलग हो जाओ।
प्रश्नकर्ता : विषय से संबंधित दोष हो रहे हों तो इसका स्लिप होने का मुख्य कॉज़ तो मन है । तो इस मन से जो विषय हो रहे हों और उन्हें दूर करना हो तो कैसे कर सकते हैं ?
दादाश्री : मन की ओर ध्यान नहीं देना है। 'मन' को 'देखते' रहना है।
प्रश्नकर्ता : क्योंकि अभी तो चंद्रेश का पूरा कंट्रोल 'मन'