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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
यदि हम दूसरी ओर देखें तो उन गाँठों को देखना रह जाएगा
न?
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दादाश्री : वह तो अगर तुम में शक्ति हो तो नया उपयोग दूसरी ओर नहीं रखकर उसी को देखो । शक्ति नहीं हो तो उपयोग बदलकर दूसरी ओर नया उपयोग रख दो।
प्रश्नकर्ता : तो दोनों संभव है?
दादाश्री : संभव ही है न! इस ओर नया उपयोग रख दे। तो तू ऐसा करता है न ? वह ठीक है ।
प्रश्नकर्ता : विषय के बहुत ज़ोरदार विचार आएँ तो दूसरी ओर देख लेना है ताकि वे निकल जाएँ।
दादाश्री : बस । वे अपने आप चले जाएँगे। सबसे आखिरी रास्ता यही है कि उन्हें एक्ज़ेक्ट देखकर जाने देना। लेकिन वह नहीं हो पाए तो इस रास्ते से करोगे तो भी तुम्हें चलेगा।
प्रश्नकर्ता : तो फिर यह बीच का रास्ता हुआ न !
दादाश्री : यह नज़दीकी रास्ता ।
प्रश्नकर्ता : यानी सबसे आखिरी तो देखकर जाने देना, वह है ।
दादाश्री : फिर ज़्यादा नहीं रहेगा, थोड़ा सा ही हिसाब बचेगा। लेकिन अभी तुम उलझ जाते हो, उसके बजाय भले ही नज़दीकी रास्ता लो।
प्रश्नकर्ता: मुझे ऐसा विचार आया था कि मैं त्रिमंत्र पढ़ रहा हूँ। नमस्कार विधि वगैरह सब पढ़ रहा हूँ और जब आपने इस तरह देखने को कहा तब ऐसे कुछ छू नहीं रहा था। तब बिल्कुल सीधा चल रहा था। लेकिन जब यह विधि करना चूक गए, तब वापस यह सब ऐसे ही आने लगा अंदर। इसलिए वापस मुझे थोड़ा इफेक्ट हो जाता था।