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ब्रह्मचर्य प्राप्त करवाए ब्रह्मांड का आनंद (खं-2-१४)
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थकान लगेगी। इसलिए बस चलते रहो न! तो अपने आप आ जाएगा। तुम्हारे जैसी समाधि बड़े-बड़े संतों को भी नहीं रहती। फिर इससे अधिक और क्या सुख चाहिए?
प्रश्नकर्ता : फिर भी अभी बाकी ही है न?
दादाश्री : भगवान का कानून कैसा है? हमें जो मिला, वही सही है। जो मिला, उसे नहीं भोगता और जो नहीं मिला, उसके लिए झंझट करता है, वह मूर्ख इंसान है। आगे बढ़ने के प्रयत्न तो जारी ही हैं, उसका बोझ रखने की ज़रूरत नहीं है। हम चल रहे हों और फिर कहें कि, 'गाँव कब पहुँचेंगे? गाँव कब पहुँचेंगे?' तो क्या होगा?! अरे, तू चल तो रहा ही है, अब क्यों बकबक कर रहा है? चलने में आनंद आए तो देखने का मन होगा कि 'यह आम, यह जामुन' ऐसा आराम से सब देखे, लेकिन अगर 'कब पहुँचेंगे, कब पहुँचेंगे?' करते रहें न, तो फिर आनंद नहीं रहेगा।
प्रश्नकर्ता : व्रत लिए दो साल हो गए, फिर भी बाहर ऐसा कुछ खास परिणाम जैसा नहीं दिखता।
दादाश्री : वे तो तुम्हारे बेहिसाब घाटे हैं न! प्रश्नकर्ता : लेकिन कितना घाटा?
दादाश्री : बहुत ज़बरदस्त घाटा! फिर भी अब तो जगत् जीत लेना है। अपना पद तो दिनोंदिन अपने आप आ ही रहा
प्रश्नकर्ता : कई बार ऐसा लगता है कि धीरे-धीरे कब पार उतरेंगे? यह महीना तो गया। इसमें कुछ प्रोग्रेस नहीं हुई।
दादाश्री : तुझे प्रोग्रेस नहीं देखनी है, लेकिन यही देखना है कि जिनसे नुकसान हो, ऐसे कोई साधन तो खड़े नहीं हो गए? फायदा तो निरंतर हो ही रहा है। आत्मा का स्वभाव है,