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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
वर्तन सभी कुछ बदल जाता है !!! वर्ना तब तक तो पुद्गलसार धुलता ही रहता है सारा । यह जो आहार खाया न, उसका सारा सार खत्म हो जाता है।
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प्रश्नकर्ता : मन को प्रशिक्षित करने में कुछ समय तो बीत ही जाएगा न?
दादाश्री : मन को प्रशिक्षित करने में तो ऐसे कितना समय बीत गया ? अनादि काल से कर रहे हैं, यह सब |
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन जैसा आप कह रहे हैं, मन को उस तरह से प्रशिक्षित करने में कुछ समय तो बीत ही जाएगा न? मन क्या एकदम से प्रशिक्षित हो सकता है ?
दादाश्री : थोड़ा समय लेता है, छ: बारह महीने लेता है।
प्रश्नकर्ता : यानी पहले आकर्षण होता है और फिर विचार आता है, ऐसा कोई नियम नहीं है । यों ही विचार भी आ सकते हैं ?
दादाश्री : विचार तो यों ही आ सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : फिर जब विचार आते हैं, उसके बाद मंथन शुरू होता है।
दादाश्री : विचार आते ही मंथन शुरू हो जाता है, लेकिन यदि प्रतिक्रमण नहीं करे तो । इसलिए हम कहते हैं कि विचार आते ही तुरंत उखाड़कर फेंक देना। एक क्षणभर के लिए भी विचार को रखना नहीं चाहिए, प्रतिक्रमण करके तुरंत फेंक देना।
प्रश्नकर्ता : और जिसे बहुत ही स्पीडिली विचार आएँ तो ?
दादाश्री : बहुत स्पीडिली में तो उसे समझ में ही नहीं आएगा। क्योंकि अंदर मंथन हो चुका होता है, फिर मंथन से पूरा