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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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प्रश्नकर्ता : कई बार अकेले होते हैं, फिर भी अपने आप अंदर से विचार फूटने लगते हैं।
दादाश्री : अकेले जैसा कुछ होता ही नहीं है, लेकिन जब टाइमिंग होता है, तब टाइम दिखा ही देता है।
ये सब सूक्ष्म बातें है, कुछ-कुछ विचारशील लोगों को ही समझ में आती हैं। अगर नहीं समझेगा तो मार खाएगा। कुदरत के घर क्या कुछ कम परेशानी हैं?!
प्रश्नकर्ता : मान लो कि उसकी वह विचारधारा पाँच-दस मिनट चली तो? और फिर तुरंत ही उसका प्रतिक्रमण कर ले
तो?
दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं है। लेकिन विचारधारा के कुछ समय के अंतराल में ही कर लेना चाहिए। एकदम टाइम भी नहीं जाने देना चाहिए, वर्ना फिर मंथन हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : यानी एक विचार आया कि तुरंत?
दादाश्री : तुरंत ही, यानी कि वह आगे और प्रतिक्रमण उसके पीछे, ऐसा। जैसे आगेवाले एक इंसान के पीछे दूसरा इंसान जा रहा हो, वैसा। तो आगे यह विचार हो और पीछे यह प्रतिक्रमण होना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : यानी एक सेकन्ड की भी देर नहीं लगनी चाहिए?
दादाश्री : सेकन्ड की देर लगी हो तो चल सकता है। क्योंकि इस प्रतिक्रमण में बहुत ताकत है। इसलिए वह विचार शुरू होते ही उसे तेज़ी से उड़ा देना। प्रतिक्रमण में तो बहुत ज़ोर होता है। प्रतिक्रमण का जोर अतिक्रमण के ज़ोर से बहुत ज़्यादा होता
जहर पी लिया हो तो अगर चूंट उसके गले से नीचे उतरने