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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
वह ब्रह्मचर्य ही है। ब्रह्मचर्य पालन करोगे तो ऐसा सुख भोगोगे, जो कि देवलोक भी नहीं भोगते, लेकिन अगर पालन नहीं कर पाए और बीच में ही फिसल गए तो मारे जाओगे ! ब्रह्मचर्य व्रत, वह महान व्रत है और उससे आत्मा का स्पेशल अनुभव हो जाता है।
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समझो गंभीरता, ब्रह्मचर्य व्रत की
सभी को ब्रह्मचर्यव्रत लेने की ज़रूरत नहीं है । वह तो जिसे उदय में आए। अंदर ब्रह्मचर्य के बहुत विचार आते रहते हों, वह फिर व्रत ले। जिसे ब्रह्मचर्य बरते, उनके दर्शन की तो बात ही अलग है न? किसी को उदय में आए, उसी के लिए ब्रह्मचर्य व्रत है। उदय में नहीं आए तो बल्कि दिक्कत हो जाती है, गड़बड़ हो जाती है। ब्रह्मचर्य व्रत साल भर के लिए ले सकते हैं या छ: महीने का भी ले सकते हैं। जिसे ब्रह्मचर्य के बहुत विचार आते रहें, उन विचारों को दबाते रहने पर भी विचार आते रहें तभी ब्रह्मचर्य व्रत माँगना, वर्ना यह ब्रह्मचर्य व्रत माँगने जैसा नहीं है। यहाँ पर ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद व्रत तोड़ना, वह महान गुनाह है। आपको किसी ने बाँधा नहीं है कि आप व्रत लो ही ! अंदर यदि व्रत लेने के लिए इच्छाएँ बहुत उछल-कूद कर रही हों तभी व्रत लेना। कभी अगर व्रत भंग हो जाए तो ज्ञानी उसका इलाज भी बताते हैं । विषय का कभी भी विचार नहीं आए, ब्रह्मचर्य महाव्रत। यदि विषय याद आए तो व्रत टूटा ।
वह
हम तुम्हें ब्रह्मचर्य के लिए आज्ञा देते हैं, उसमें अगर तुम से गलती हो जाए तो उसकी जोखिमदारी बहुत भयंकर है। तुम यदि गलती नहीं करोगे तो फिर सबकुछ हमारी जोखिमदारी पर ! तुम मेरी आज्ञापूर्वक जो कुछ भी करोगे उसमें तुम्हारी जोखिमदारी नहीं और मेरी भी जोखिमदारी नहीं ! तुम आज्ञापूर्वक करोगे तो तुम्हारा अहंकार खड़ा नहीं होगा । इसलिए तुम्हारी जोखिमदारी नहीं आएगी और तो फिर आज्ञा देनेवाले की जोखिमदारी तो है ही न ? ! लेकिन