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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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उल्टी हो गई तो क्या मर जाना चाहिए?
ब्रह्मचर्य व्रत लिया हो और कुछ उल्टा-सीधा हो जाए न, तब उलझ जाता है। एक लड़का उलझ रहा था, मैंने कहा, 'क्यों भाई, उलझन में हो?' आपसे बताते हुए मुझे शर्म आ रही है। मैंने कहा, 'क्या शर्म आ रही है? लिखकर दे दे।' मुँह से कहने में शर्म आती है तो लिखकर दे दे। 'महीने में दो-तीन बार मुझे डिस्चार्ज हो जाता है', कहता है। 'अरे पगले, इसमें तो क्या इतना घबरा जाता है? तेरी नीयत नहीं है न? तेरी नीयत खराब है?' तो कहता है, 'बिल्कुल नहीं, बिल्कुल नहीं।' तब मैंने कहा, तेरी नीयत साफ हो तो ब्रह्मचर्य ही है', कहा। तब कहने लगा, 'लेकिन क्या ऐसा हो सकता है?' मैंने कहा, 'भाई, वह क्या गलन नहीं है? वह तो जो पूरण हुआ है, वह गलन हो जाता है। उसमें तेरी नीयत नहीं बिगड़नी चाहिए। ऐसा रखना कि संभालना है। नीयत नहीं बिगड़नी चाहिए कि इसमें सुख है।' अगर अंदर उलझ जाए न बेचारा तो तुरंत ठीक कर देता
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प्रश्नकर्ता : नीयत ही मूल चीज़ है! 'नियत कैसी है' उसी पर आधारित है सबकुछ।
दादाश्री : तेरी नीयत किस तरफ की है? तेरी नीयत खराब हो और शायद डिस्चार्ज नहीं हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि तू ब्रह्मचारी बन जाएगा। भगवान बहुत पक्के थे, कौन ऐसे समझाएगा? और कुदरत तो अपने नियम में ही है न! उल्टी हो जाए तो मर जाएगा, क्या ऐसा हो गया? शरीर है तो उल्टी नहीं होगी तो क्या होगा? रोज़ सुल्टी होती है तो फिर उल्टी नहीं होगी वापस?
प्रश्नकर्ता : अभी लास्ट थोड़े समय में कई बार पतन हो गया था, डिस्चार्ज हो गया था।