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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : मन भोग भी सकता है या नहीं भी।
प्रश्नकर्ता : सिर्फ मन से भोग रहा है, तब गाँठ पड़ती है, और मन और काया दोनों साथ में हों तो उसका कैसा कर्म बंधेगा?
दादाश्री : जहाँ मन आया, वहाँ सबकुछ बिगड़ता है और कई तो, मन, देह और चित्त से भोगते हैं, वह तो बहुत खराब है।
प्रश्नकर्ता : चित्त से भोगना मतलब क्या?
दादाश्री : फिल्म से भोगना, तरंगें (शेखचिल्ली जैसी कल्पनाएँ) भोगना, तरंगी भोगवटा कहते हैं उसे!
प्रश्नकर्ता : मन का जो विषय उत्पन्न होता है और शरीर का जो विषय उत्पन्न होता है, इन दोनों में जोखिमवाला कौन सा?
दादाश्री : शरीर से जो विषय उत्पन्न हुआ, अगर उस पर ध्यान नहीं देंगे तो चलेगा लेकिन मन से विषय नहीं होना चाहिए। ये सभी लोग शरीर के विषय से धोखा खा जाते हैं। उसमें धोखा खाने की कोई वजह नहीं है। मन में नहीं रहना चाहिए। विषय के बारे में मन साफ हो जाना चाहिए, मन निवृत्त हो जाना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : यानी मूल बीज तो मन से ही पड़ते हैं, ऐसा?
दादाश्री : अगर मन में होगा, तभी वह विषय है, वर्ना वह विषय नहीं है। इन्द्रिय टाइट हो जाए फिर भी मन न जागे, ऐसा है लेकिन लोग तो क्या कहते हैं कि इन्द्रिय टाइट होने के बाद मन में आता है। टाइटनेस न आए उसके लिए इन लोगों ने क्या किया कि आहार कम करो, आहार बंद करो, दूध बंद करो ताकि इन्द्रिय नरम पड़ जाए और टाइटनेस नहीं आए, इससे मन में नहीं आएगा। यानी इन लोगों की बात गलत है, ऐसा आपको समझ में आ रहा है? ये सारी बहुत सूक्ष्म बातें बता रहा हूँ, समझने में ज़रा देर लगे, ऐसी है।