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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
करता है, शरीर परेशान करे, ऐसा नहीं लगता। बाकी ये जो भोग भोगते हैं, उससे शरीर को एक तरह की तृप्ति मिलती है।
दादाश्री : हाँ, वह संतोष होता है। संतोष यानी क्या कि किसी भी प्रकार की इच्छा हुई, शराब पीने की इच्छा हुई तो
आखिर में जब वह शराब पीता है, तब उसे संतोष होता है। फिर भले ही कैसी भी बेवकूफ जैसी इच्छा होगी फिर भी उसे संतोष होगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, पहले तो वह मन पर ही असर करता है, तो देह का ज़ोर बढ़ जाता है न?
दादाश्री : नहीं, देह में और मन में इतना संबंध नहीं है। क्योंकि छोटे बच्चे भी आहार अधिक खाते हैं। उससे शरीर का ज़ोर बहुत रहता है। उनका मन इस विषय के बारे में जागृत नहीं होता, फिर भी उनके शरीर पर असर दिखता है।
प्रश्नकर्ता : क्या असर दिखता है?
दादाश्री : ‘इन्द्रिय' टाइट हो जाती है, लेकिन उसके मन में कुछ नहीं होता। यानी शरीर का असर इतना नुकसान करे, ऐसी चीज़ नहीं होती। लेकिन लोग तो उल्टा मान लेते हैं। यह तो उल्टी मान्यताएँ हैं सारी। बाकी छोटे बच्चे कुछ विषय को नहीं समझते, उनके मन में विषय जैसा कुछ होता भी नहीं है। फिर भी यह शरीर का बल है। आहार और दूध वगैरह सब खाते हैं, इसलिए इन्द्रिय टाइट हो जाती है। इससे ऐसा मान लेना कि वह शरीर को नुकसान पहुंचाता है, तो वह गलत है। यह सारा मन का ही रोग होता है। मन का रोग ज्ञान से चला जाए ऐसा होता है, तो फिर हमें इसमें परेशानी कहाँ आती है?
प्रश्नकर्ता : अभी भी कुछ ठीक से समझ में नहीं आ रहा है। तो शरीर को कोई निष्पत्ति ही नहीं होती?