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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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ब्रह्मचारियों के लिए ही झंझट है न? बाकी सभी को तो अपने इस विज्ञान में तो कोई झंझट ही नहीं है न? अपने इस विज्ञान में तो धीरे से निकाल कर लेना है। ये तो ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, इसलिए सब कहना पड़ता है। अतः यदि यों कुछ सालों तक ब्रह्मचर्य संभल गया, कंट्रोलपूर्वक, तो फिर वीर्य ऊर्ध्वगामी हो जाएगा
और तब ये शास्त्र-पुस्तकें ये सब दिमाग़ में धारण कर सकेंगे। धारण करना, कोई आसान चीज़ नहीं है, वर्ना पढ़ता है और फिर भूलता जाता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा ही होता है अभी।
दादाश्री : अब यदि वीर्य ऊर्ध्वगामी हो चुका हो तभी वह धारण कर सकता है, नहीं तो धारण नहीं कर सकता।
प्रश्नकर्ता : ये जो प्राणायाम करते हैं, योग करते हैं, वे ब्रह्मचर्य के लिए कुछ हेल्पफुल हो सकते हैं?
दादाश्री : वैसा अगर ब्रह्मचर्य के भाव से करे तो हेल्पिंग हो सकता है। ब्रह्मचर्य का भाव होना चाहिए और आपको शरीर स्वस्थ रखने के लिए करना हो तो उससे शरीर स्वस्थ रहेगा। यानी भाव पर ही सारा आधार है लेकिन इन सब में आप मत पड़ना, वर्ना अपना आत्मा रह जाएगा।
प्रश्नकर्ता : जहाँ स्त्री बैठी हो, उस बैठक पर ब्रह्मचारी को नहीं बैठना चाहिए?
दादाश्री : यह तो पुराने ज़माने की बात हुई। अभी इस काल में यह माफ़िक नहीं आएगा। वह सब मैंने निकाल दिया है। क्योंकि अगर बस में कोई स्त्री उठे और आप नहीं बैठो तो कहाँ बैठोगे? तो क्या खड़े रहोगे? और अगर वह स्त्री उठ जाए और आप ऐसा कहो कि 'मैं नहीं बैठ सकता' तो लोग तुम्हें ऐसा कहेंगे कि 'घनचक्कर है।' तुम मूर्ख नहीं दिखो इसलिए मैंने पहले से ही सबकुछ निकाल दिया है। ऐसी तो बहुत सी बातें हैं। यहाँ स्त्री की फोटो भी नहीं