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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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प्रश्नकर्ता : यानी रोगों की वजह से अब्रह्मचर्य है?
दादाश्री : रोगों से ही अब्रह्मचर्य है। निरोगी इंसान को अब्रह्मचर्य का झंझट ही नहीं रहता! उसे वह अच्छा ही नहीं लगता। उसे तो निरोगीपन का ही आनंद रहता है, इसलिए उसे विषय अच्छा ही नहीं लगता जबकि इस शरीर का तो... अभी ऐसा रोगी हो गया है, यानी इस काल में निरोगी हैं ही नहीं न! निरोगी तो सिर्फ तीर्थंकर होते हैं!
प्रश्नकर्ता : तो हमें निरोगी बनने के लिए, ब्रह्मचर्य पालन के लिए इस शरीर का भी ध्यान रखना पड़ेगा न?
दादाश्री : शरीर का ध्यान तो ऐसी चीज़ है कि आपके लिए अब यह निकाली बात है। ऐसा ध्यान तो कब रखना होता है, कि कर्ता साथ में हो तब। हमें भाव रखना है कि बॉडी निरोगी होनी चाहिए, ऐसा पक्षपात रहना चाहिए और फिर शरीर को ज़रा संभालना।
प्रश्नकर्ता : कोई इंसान तंदुरस्त है, तो वह तंदुरस्ती किस चीज़ के आधार पर टिकी हुई है? शारीरिक शक्ति का आधार वीर्य शक्ति है न!
दादाश्री : इन स्त्रियों में वीर्य नहीं होता, फिर भी शारीरिक शक्ति बहुत होती है।
प्रश्नकर्ता : तो तंदरुस्ती का जो स्तर है, वह किस आधार पर तय होता है?
दादाश्री : वह रोग मुक्तता पर आधारित है। रोग नहीं होता तब शक्ति अधिक होती है। रोग के कारण शक्ति कम हो जाती
है।
वीर्य शक्ति अलग चीज़ है। वीर्य तो हर एक के अंदर होता ही है, रोगी हो या निरोगी हो, दोनों में, सभी में होता है। दुबले