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तितिक्षा के तप से गढ़ो मन-देह (खं-2-१२)
२६७ दादाश्री : तो वैसी सिकनेस लाना। प्रश्नकर्ता : लाना अपने बस की बात नहीं है न?
दादाश्री : तब अपने बस की बात क्या है? अगर चार दिन भूखे रहें तो अपने आप बीस दिन की सिकनेस आ जाएगी! चार दिन भूखा रहने के बाद विकार नहीं रहता।
आहार कम लिया कि चला। जीने के लिए खाए, खाने के लिए नहीं जीए। पहले रात को नहीं खाता था, तब अच्छा रहता था या अब अच्छा रहता है? ___ प्रश्नकर्ता : पहले बहुत अच्छा रहता था।
दादाश्री : तो जान-बूझकर बिगाड़ा क्यों?
प्रश्नकर्ता : खाने के दो-चार घंटे बाद भूख लगे तो और कुछ माँगता है।
दादाश्री : लेकिन आहार ऐसा लेना है कि भूख लगे ही नहीं, ऐसा शुष्क आहार कि जिसमें दूध-घी-तेल ऐसा बहुत पुष्टिकारक आहार न आए। ये दाल-चावल-कढ़ी खाना, वह ज़्यादा पुष्टिकारक नहीं होता।
इस काल में तो कंट्रोल किए जा सकें, ऐसे संयोग ही नहीं है! दबाने जाए तो बल्कि मन और ज़्यादा उछल-कूद करता है। इसलिए आहारी आहार करता है, ऐसे चलने देना। लेकिन वापस वह ब्रह्मचर्य को नुकसान नहीं करे, इतना ज़रा देखना! आहार के लिए आपको कंट्रोल या कंट्रोल नहीं, हमें ऐसा कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ यदि कभी विषय परेशान कर रहा हो, उदयकर्म का धक्का ज़्यादा लग रहा हो, तो उसे आहार पर कंट्रोल करना चाहिए। पुरुषार्थ और तो क्या है लेकिन तुम्हें चंद्रेश से कहना पड़ेगा। चंद्रेश के साथ जुदापन रखकर तुम्हारी बातचीत हो, वही। क्योंकि आत्मा तो कुछ बोलता ही नहीं है,