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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
लेकिन भीतर जो प्रज्ञा नाम की शक्ति है, वह कहती है कि भोजन ज़रा कम लोगे तो तुम्हें ठीक रहेगा। क्योंकि अगर अहंकार करने जाए तो अहंकार जीवित हो जाएगा। यह जो ज्ञान दिया है, उससे अहंकार निर्जिव हो गया है। 'ज़रूरत से ज़्यादा नहीं खाना है', ऐसा तय करने के बाद अगर गलती से खा लिया जाए, तो उसके लिए कहना 'व्यवस्थित है'।
जीना है, ध्येय अनुसार प्रश्नकर्ता : हर एक कार्य में तय करना पड़ता है। ज़्यादा नहीं खाना है, ऐसा तय किया और उसके लिए जागृति रखी, ऐसे हर एक कार्य में जागृति रखनी पड़ेगी?
दादाश्री : वह जो उपयोग रखा, वही जागृति! प्रमाद यानी खाना खाते रहना। इसलिए फिर कहीं भी ठिकाना ही नहीं रहता। पूरे दिन जो कुछ भी आए, वह खाता ही रहता है। मैं तो कितने ही सालों से मजबूरन खा रहा हूँ।
और अगर कोई इंसान बीमार हो, तीन दिन से और उसे विषय के लिए कहा जाए कि 'पचार हज़ार रुपये दूंगा,' तो करेगा?
प्रश्नकर्ता : नहीं करेगा, शक्ति ही नहीं रहेगी न!
दादाश्री : यह सब शक्ति करती है, आहार ही करता है यह सब।
प्रश्नकर्ता : पौद्गलिक शक्ति।
दादाश्री : हं। हमें दो-तीन दिन खाए बगैर ही बिता देने चाहिए। साधु, ऐसे ही बिताते हैं न? यह उपाय! शक्ति होगी तभी विषय में पड़ेगा न? उपाय तो करना पड़ेगा न?
मतलब महीने में दो बार भूखे रहना चाहिए। दो-दो दिन।