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न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३)
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उसे यह संसार अच्छा नहीं लगता, अत्यंत सुंदर से सुंदर चीज़ भी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। वही, आत्मा की तरफ का ही अच्छा लगता है, पसंद बदल जाती है। जब देहवीर्य प्रकट होता है, तब आत्मा का अच्छा नहीं लगता।।
प्रश्नकर्ता : आत्मवीर्य कैसे प्रकट हो सकता है?
दादाश्री : निश्चय किया हो और हमारी आज्ञा का पालन करे तभी से ऊर्ध्वगति में जाता है। दो आँखों से आँखें मिलीं, वहाँ आकर्षण हुआ, उसका प्रतिक्रमण करते रहना है। ऐसे पच्चीस या पचास होंगे, ज़्यादा नहीं होंगे। उन सबका प्रतिक्रमण करके छोड़ देना है। वह अतिक्रमण से खड़ा हुआ है और प्रतिक्रमण से बंद हो जाएगा।
वीर्य को ऐसी आदत नहीं है, कि अधोगति में जाना है। वह तो खुद का निश्चय नहीं है, इसलिए अधोगति में जाता है। निश्चय किया कि दूसरी ओर मुड़ जाता है, और फिर चेहरे पर दूसरों को भी तेज दिखने लगता है और ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले के चेहरे पर कोई असर नहीं दिखे, तो 'ब्रह्मचर्य का पूर्णतः पालन नहीं किया' ऐसा कहलाएगा।
प्रश्नकर्ता : वीर्य का ऊर्ध्वगमन शुरू होना हो तो उसके लक्षण क्या हैं?
दादाश्री : नूर आने लगता है, मनोबल बढ़ता जाता है, वाणी फर्स्ट क्लास निकलती है। वाणी मिठासवाली होती है। वर्तन मिठासवाला होता है। ये सब उसके लक्षण होते हैं। उसमें तो बहुत देर लगती है, वह अभी यों ही नहीं हो सकेगा। अभी एकदम नहीं हो जाएगा।
उपाय करना, स्वप्नदोष टालने के लिए प्रश्नकर्ता : स्त्री के बारे में जो सपने आते हैं, वे हमें