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विषयी आचरण? तो डिसमिस (खं - 2 -१०)
आते ही। जिस तरह अपने खेत - बगीचे में कोई फालतू चीज़ उग जाए तो उसे निकाल देते हैं, उसी तरह उल्टी चीज़ को तुरंत उखाड़ देना चाहिए ।
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पाशवता करने से तो अच्छा शादी कर लेना। शादी करने में क्या हर्ज है ? वह पाशवता अच्छी है, शादीवाली ! शादी नहीं करना और गलत नखरे करना, वह तो भयंकर पाशवता कहलाती है, नर्कगति के अधिकारी ! और वह तो यहाँ होना ही नहीं चाहिए न? शादी करना तो हक़ का विषय कहलाता है । सोचकर देखना, शादी करनी है या नहीं ?
प्रश्नकर्ता: सवाल ही नहीं। नो चान्स ।
दादाश्री : अभी जब तक पक्का नहीं हो जाता, तब तक डिसीज़न नहीं लेना ही ठीक है, धीरे धीरे पक्का करने के बाद ही डिसीज़न लेना ।
फिसलना सहज, यदि एक बार फिसला
ब्रह्मचर्य भंग करना, वह बहुत बड़ा दोष है। ब्रह्मचर्य भंग हो जाए, तो मुश्किल है । थे वहाँ से गिर पड़े। दस साल से रोपा हुआ पेड़ हो और गिर जाए तो फिर आज ही रोपा हो, ऐसा ही हो गया न और वापस दसों साल व्यर्थ गए ! और ब्रह्मचर्यवाला गिर गया। एक ही दिन गिर जाए तो खत्म हो गया ।
और जो इंसान यहाँ से फिसला तो फिर वह जो फिसला, वह उतना हिस्सा फिर से ज़ोर लगाएगा, वही हिस्सा फिर से उसे फिसलाएगा। फिर खुद के क़ाबू में नहीं रह पाता। फिर क़ाबूकंट्रोल खो देता है, खत्म हो जाता है। वहाँ हम सावधान रहने को कहते हैं । 'मर जाएगा, ' कहते हैं ।
न हो संग संयोगी
जागृति रहती है न, अब ? आनंद शुरू हो गया है न! वे