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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
फिर ऐसा लगता है कि कुछ खा लें, जो भी मिले वह।
दादाश्री : अकेले पड़ते ही फिर थोड़ा कुछ खा लेता है। वही देखना है न(!) यहाँ भले ही कितना भी रखा हुआ हो लेकिन फिर भी अकेले में भी छूए नहीं, ऐसा होना चाहिए! टाइम पर ही खाना है, उसके सिवा बीच में और कुछ भी नहीं खाना चाहिए। बेटाइम यदि खाते हैं, तो उसका मतलब ही नहीं है न! वह सब मीनिंगलेस है। उससे तो जीभ भी बहल जाती है, फिर क्या रहा? दिवाला निकल जाता है! सभी चीजें यों ही रखी हों फिर भी हम नहीं छूते, कुछ भी नहीं छूते! यह तो छुआ और मुँह में डाला तो फिर ऑटॉमैटिक शुरू हो जाएगा, यदि छूओगे न तब भी! आपको तो इतना ही तय करना है कि हमें छूना नहीं है, तो गाड़ी राह पर चलेगी। नहीं तो पुद्गल का स्वभाव ऐसा है कि यों भोजन करने बिठाएँ न, तो चावल आने में ज़रा देर हो जाए तो लोग दाल में हाथ डालते हैं, सब्जी में हाथ डालते हैं और खाते रहते हैं। जैसे बड़ी चक्की हो न, वैसे अंदर डालता ही रहता है। अरे, चावल आने तक बैठा रह न चुपचाप, लेकिन बैठ नहीं पाता न! दाल में हाथ डालता है और न हो तो आखिर में जीभ पर चटनी चुपड़ता रहता है। बड़े मिलवाले भी! इस पुद्गल का स्वभाव ही ऐसा है! इसमें इन लोगों का कोई दोष नहीं है। मैं भी दाल में हाथ डालता रहता हूँ न!
प्रश्नकर्ता : तो हमें इसमें सिर्फ तय ही करना है? ऐसा?
दादाश्री : उसे यदि छू लिया तो फिर वह बढ़ता जाएगा। इसलिए हम तय कर लें कि पूरे दिन में इतनी ही मात्रा लेनी है। तो फिर गाडी नियम में चलेगी और बीच में इतने समय तक मुँह में कुछ डालना ही नहीं है। ये सब लोग पान क्यों चबाते होंगे? मुँह में कुछ रखना है, ऐसी आदत है इसलिए फिर पान चबाते हैं। कुछ भी मुँह में डालें, तब उन्हें मज़ा आता है।