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विषयी आचरण? तो डिसमिस (खं-2-१०)
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अभी तो, जितना खरा तप करोगे, उतना ही आनंद। यही तप करना है, और कोई तप नहीं। आमने-सामने छोटा हुल्लड़ हो जाए और खबर कर दें तो तुरंत प्रबंध हो जाता है। इस तरह से प्रबंध रखना है।
प्रश्नकर्ता : अब अंदर यों ब्रह्मचर्य का पक्का निश्चय हो ही गया है!
दादाश्री : तेरा निश्चय हो ही गया है। चेहरे पर नूर आ गया है न!
प्रश्नकर्ता : ज्ञान में थोड़ी कमी रह जाए तो हर्ज नहीं है, लेकिन ब्रह्मचर्य का तो बिल्कुल परफेक्ट (निश्चित) कर लेना है। यानी कम्प्लीट (संर्पूण) निर्मूल ही कर देना है। फिर अगले जन्म का जोखिम नहीं रहेगा।
दादाश्री : बस, बस। प्रश्नकर्ता : अभी तो दादा मिले हैं तो पूरा कर ही देना
दादाश्री : पूरा कर ही देना है। वह निश्चय डगमगाए नहीं, इतना रखना है। विषय का संयोग नहीं होना चाहिए। तुम से और कुछ भी होगा तो लेट गो करेंगे (चला लेंगे)। उसका इलाज बता देंगे। बाकी सभी गलतियाँ पाँच-सात-दस तरह की होंगी तो उसका सभी तरह का इलाज बता देंगे। उसका इलाज है, मेरे पास सभी प्रकार का इलाज है। लेकिन इसका इलाज नहीं है। नौ हज़ार मील आया और वहाँ पर नहीं मिला तो वापस लौट गया। अब नौ हज़ार पाँचसौ मील पर 'वह' था! यों वापस लौटने की मेहनत की, उससे अच्छा आगे बढ़ न! देखो न इसे निश्चय नहीं हुआ है, कितनी परेशानी है?
प्रश्नकर्ता : निश्चय तो है लेकिन गलतियाँ हो जाती हैं।