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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : जैसे जैसे काल बदलता जा रहा है, वैसे वैसे दुःख सहन करने की शक्ति भी कम होती जा रही है न?
दादाश्री : ऐसा नहीं है। दुःख से काल को कुछ लेना देना नहीं है। उसके लिए तो मनोबल चाहिए। हमें देखने से बहुत मनोबल उत्पन्न होता है और मनोबल होगा तभी काम होगा। कैसे भी दुःख हों, फिर भी मनोबलवाला इंसान उन्हें पार कर देता है। 'अब, मेरा क्या होगा?' ऐसा वह नहीं बोलेगा।
स्मशान में जाएँ और अगर वहाँ आग देखें तो ये लोग काँप जाते हैं। क्या वहाँ कोई खा जानेवाला है? अरे, क्या आत्मा को खा जानेवाला है? खा जाएगा तो देह को खा जाएगा। वहाँ स्मशान में कुछ नहीं है। सिर्फ अपने मन की कमजोरियाँ है। हाँ, दो दिन प्रैक्टिस करनी पड़ेगी। बाकी, इनकी ऐसी वैसी परीक्षा नहीं ले सकते। नहीं तो फिर बुखार उतरेगा ही नहीं। डॉक्टरों से भी नहीं उतर पाएगा। इसे घबराहट का बुखार कहते हैं। घबराहट का बुखार तो हमारे बहुत विधियाँ करने पर ही उतरता है। इससे अच्छा सोए रहना न घर पर चुपचाप, देख लेंगे आगे।
इन वेदांतियों ने तितिक्षा गुण को विकसित करने को कहा है, जैनों ने बाईस परिषह सहन करने को कहा है। भूख लगे, प्यास लगे, अंदर कलपने लगे इस तरह जो कुछ भी हो उन सब को समताभाव से सहन करना सीखो। प्यास तो इन लोगों ने देखी ही नहीं है। जंगल में गए हों और पानी नहीं मिले, उसे प्यास कहते हैं। वह भूख-प्यास हमने देखी है। कॉन्ट्रेक्ट के काम में जंगल में और सभी जगह गए हैं, तब देखी थी। और फिर बर्फ गिरे ऐसी ठंड सहन नहीं हो पाती थी, सख्त धूप होती थी, यहाँ शहर में होती है, ऐसी नहीं! बम गिर रहे हों, तब मनोबल का पता चलता है! मनोबलवाले को देखने से मनोबल उत्पन्न होता है। लेकिन जगत् ने, जीव ने मनोबल देखा ही नहीं है! हमारे में तो ग़ज़ब का मनोबल है। लेकिन अगर वह देखे