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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
इस बवंडर में तो फ्रैक्चर हो जाता है सबकुछ। इसलिए जितने हमें मिले उतने सभी बच गए। यह तो बवंडर है, प्रवाह है, उसमें टकराकर-कुटकर मरना है! दिन-रात जलन! कैसे जीते हैं, वही आश्चर्य है!
विषयी वातावरण से फैला व्यापार प्रश्नकर्ता : ऑफिस में सभी और कुसंग बहुत ही है। वहाँ सब ऐसी विषय की और ऐसी ही बातें चलती रहती हैं, इसलिए उसीकी रमणता चलती रहती है।
दादाश्री : यह जगत् अभी कुसंग रूपी ही है। इसलिए किसी के साथ खड़े रहना जैसा नहीं है, कहीं भी।
प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है कि कब छूटेगा यह।
दादाश्री : या तो अकेले बैठे रहना, या फिर यहाँ आकर सत्संग में पड़े रहना। कभी भी कुसंग में खड़े रहने जैसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे नौकरी का बिल्कुल भी शौक नहीं
दादाश्री : क्या करोगे नहीं जाओगे तो? बाहर का कुसंग छूना नहीं चाहिए, दादा का निदिध्यासन निरंतर रहना चाहिए। आँखें मींचकर दादा दिखें तो कुसंग छूएगा ही नहीं न! ऑफिस में कुसंग मिल जाता है, नहीं?
प्रश्नकर्ता : यानी हमें अच्छा नहीं लगता हो, ऐसा आए तब फिर संघर्ष होता है।
दादाश्री : संघर्ष होकर भी निकाल हो जाता है न? वह आता है न, 'और भी कोई हो तो आ जाओ, मुझे तो निकाल कर देना है', कहना, घबराना नहीं। जहाँ मानसिक संघर्ष है, वहाँ उसमें देर ही कितनी लगेगी? देह का संघर्ष नहीं होना चाहिए। मानसिक संघर्ष में हर्ज नहीं, उसका निकाल आ जाएगा।