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[१२] तितिक्षा के तप से गढ़ो मन-देह
सीखो पाठ तितिक्षा के तितिक्षा क्या है?
घास या चारे में सो जाना पड़े, तब कंकर चुभे, उस समय याद आए कि, 'अरे! घर पर कितना अच्छा था।' तो वह तितिक्षा नहीं कहलाती। कंकर चुभे तब ऐसा लगना चाहिए कि यह अच्छा है। यह तो मैंने आपको सिर्फ सोने की ही बात बताई, बाकी जब वैसे संयोग आ जाएँ, तब क्या करना पड़ेगा? यानी हर एक चीज़ में ऐसा होना चाहिए। सहन नहीं हो, वैसी सख्त ठंड में ओढे बिना सोना पड़े तब क्या करोगे? आपने तो ऐसी प्रैक्टिस नहीं की होगी। मैंने तो पहले ऐसी बहुत प्रैक्टिस की थी। लेकिन अब तो इतने सरल संयोग इकट्ठा हो गए हैं कि बल्कि मेरा तितिक्षा गुण कम हो गया है। वर्ना मैंने तो सभी तितिक्षा गुण विकसित किए थे। इन जैनों ने बाईस प्रकार के परिषह सहन करने को कहा है। अतः यह सब समझने की ज़रूरत है। इसलिए अब आप शरीर के लिए तितिक्षा गुण विकसित करो ताकि इस शरीर को कठिनाईयों की प्रैक्टिस हो जाए! खाने में जो मिले उसमें आश्चर्य नहीं हो कि 'ऐसा? यह तो कैसे भाएगा?' वैसा ही सर्दी-गर्मी सभी में रहना चाहिए।
रात को दो बजे आपको कोई उठा ले जाए और फिर जाकर आपको स्मशान में रख दे तो आपकी क्या दशा होगी? एक और चिता सुलग रही हो और दूसरी ओर हड्डियों में से फोस्फोरस