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सेफ साइड तक की बाड़ (खं-2-११)
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दादाश्री : खाने जैसी नहीं हैं, लेकिन खा जाते हैं न! लेकिन वहाँ पर अगर ठोकरें खाओगे, वहाँ ‘ब्रह्मचर्य आश्रम' में रहना हुआ, वहाँ पर अगर कुछ भूल-चूक हुई तो सब मिलकर निकाल ही देंगे। इसलिए पहले से संभलकर चलना, फिर भी अगर ठोकर खाएँ, तो याद रखना।
चारित्र से संबंधित शिकायत नहीं आनी चाहिए! जहाँ चारित्र से संबंधित शिकायत आए, वहाँ धर्म है ही नहीं। यह तो पूरी दुनिया कबूल करती है। चारित्र से संबंधित गड़बड़ नहीं होनी चाहिए वहाँ। यदि और कोई भूल-चूक होगी तो चला लेंगे, लेकिन चारित्र से संबंधित गड़बड़ तो चला ही नहीं सकते। चारित्र तो मुख्य आधार है। धर्म में तो विषय जैसा शब्द ही नहीं होता। धर्म हमेशा विषय के विरुद्ध ही होता है।
आप इस ब्रह्मचर्य को संभालोगे न? प्रश्नकर्ता : हाँ दादा, संभालेंगे।
दादाश्री : मैं सभी से यही कहता हूँ कि आपको निश्चय मज़बूत करना चाहिए। अपना यह ऐसा है कि 'ज्ञान' पार उतार दे, बाकी अगर 'ज्ञान' नहीं हो तो पार ही नहीं उतरे। 'ज्ञान' के आधार पर, 'ज्ञान' की वजह से आपको शांति रहती है, आनंद रहता है। आप ज्ञान में रहो तो आप विषय का दुःख भूल जाओगे।
अपना ज्ञान इतना अच्छा है कि विषय बगैर रहा जा सकता है, क्रमिकमार्ग में तो स्त्री को देख भी नहीं सकते, छू नहीं सकते, सारा खाना एक साथ मिलाकर खाना पड़ता है, ऐसे तरह-तरह के नियम होते हैं। ब्रह्मचर्य तो ऐसा होता है कि यों चेहरा देखकर ही लोग प्रभावित हो जाएँ, ब्रह्मचारी पुरुष तो ऐसे दिखने चाहिए!