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स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता (खं-2-८)
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दादाश्री : बदल जाते हैं तुरंत, बीज के अनुसार। जैसा भीतर बीज होता है न, उसके अनुसार। यह आहार तो एक ही तरह का, लेकिन बीज के अनुसार बदल जाता है। ये पानी पीते हैं, लेकिन भिंडी का बीज होगा तो भिंडी ही उगेगी और अरहर का बीज होगा तो अरहर उगेगी, पानी वही का वही, जमीन भी वही की वही। अतः पुरुषों को मासिक धर्म नहीं आया, वर्ना आया होता तो पता चलता कि यह क्या है? मासिक धर्म तो कितनी मुश्किलोंवाला है! और उसमें से कितनी अशुचि निकलती है। उस अशुचि के बारे में सुने तो भी इंसान पागल हो जाए। लेकिन स्त्री बताती नहीं है कभी भी, कि क्या अशुचि निकलती है? इसलिए पति बेचारा समझता है कि कुछ भी नहीं है।
मोह व कपट के परमाणु अलग हैं अंदर। स्त्री के हिसाब से वे उत्पन्न होकर परिणामित होते हैं। वह खीर हो या जलेबी हो, वह स्त्री के बीज के अनुसार वह परिणामित होता है। पुरुष बीज हो तो पुरुष के बीज अनुसार परिणामित होता है। उसकी हद होती है। कुछ हद तक पुरुष के बीज का मोह रहता है, उस हद से बाहर नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : ये जो परमाणु हैं, उनका साइन्स क्या है वास्तव में?
दादाश्री : साइन्स यानी ये जो परमाणु हैं तो नेगेटिव परमाणु दुःखदायी होते हैं और पॉज़िटिव हों तो सुखदायी होते हैं। नेगेटिव सेन्स के सभी परमाणु दुःखदायी होते हैं, उन्हें अशुद्ध कहते हैं और पॉज़िटिव शुद्ध कहलाते हैं। सुख ही देते हैं, पॉज़िटिव।
आकर्षण, वह है मोह प्रश्नकर्ता : कोई स्त्री पास में बैठी हो और ऐसे ज़्यादा कुछ हो जाए तो डर लगता है कि हम कुछ गलत कर रहे हैं, अंदर ऐसा लगता है लेकिन फिर भी अभी भी आकृष्ट हो जाता है।