________________
२१८
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दृष्टि में विष होता है और फिर विष चढ़ जाता है। अतः यदि दृष्टि गड़ गई हो और नज़र खींच गई हो तो तुरंत प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। इसमें तो सावधान ही रहना चाहिए। जिसे यह जीवन बिगड़ने नहीं देना है, उसे बिवेयर रहना चाहिए। जान-बूझकर कोई कुएँ में गिरता है क्या ? !
विकारी चंचलता
अपने यहाँ कोई चाय पीए, खाए, सबकुछ करे फिर भी बाहर धर्मध्यान रहता है और अंदर शुक्लध्यान रहता है। किसी को ही, निकाचित कर्मवाला हो, उसी का मन विकारी हो जाता है, तब वह फिसल गया कहलाता है। निकाचित कर्मवाला कोई हो सकता है, इसमें। उसे विकारी विचार आते हैं। वह चंचलतावाला होता है। चंचल हो चुका होता है। चंचल को आप पहचानते हो या नहीं पहचानते? इधर देखता है, उधर देखता है। उसे कहें कि 'भाई, क्यों ऐसे हो रहे हो ।' तो वह इसलिए कि विकारी विचार आया इसलिए चंचल हो गया और इस कारण से धर्मध्यान और शुक्लध्यान दोनों चले जाते हैं। बाकी अपने महात्माओं को धर्मध्यान और शुक्लध्यान दोनों रहते हैं। फिर भले ही खाए-पीए, ओढ़कर सो जाए, लेटकर सो जाए ।
ऐसे निकाचित कर्मवाले को हमसे पूछना चाहिए कि 'हमें क्या करना चाहिए? अब कौन सी दवाई लगाएँ ?' बहुत गहरे घाव हो जाते हैं। ऐसे कर्मवाले हों तो हमें पूछने में हर्ज नहीं है। वह अकेले में पूछे तो हम दवाई बता देंगे कि यों दवाई लगाना ताकि घाव भर जाएँ ।
फाइल बन गई, वहाँ...
प्रश्नकर्ता : एक ही स्त्री से संबंधित विचार बार-बार आएँ तो क्या ऐसा समझना है कि उसके प्रति राग है ?
दादाश्री : वह बाँधी हुई फाइल है। अब, अगर विचार आएँ