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'फाइल' के सामने सख़्ती (खं-2-९)
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तेरा ठीक रहता है या फिर सब यों ही? अभी भी चंचल हो जाता है न?
प्रश्नकर्ता : मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।
दादाश्री : ऐसा हुआ है। मैं तो चंचलता को देखता हूँ न! तुझे पता नहीं चलता। देह चंचल हो जाए, वह तुझे पता नहीं चलता। मैं पहचान जाता हूँ न चंचलता को! ।
प्रश्नकर्ता : मन बिगड़ जाए, तब खुद को पता चलता है न?
दादाश्री : मन बिगडे, विचार बिगड़े तो तुझे पता चल जाता है। लेकिन देह चंचल हो जाए तो वह पता नहीं चलता। देह चंचल हो जाती है। उसके सामने देखने की शक्ति होनी चाहिए। संडास में उसका रूप देख लेना चाहिए। सख्त ही रहना चाहिए। यह तो अच्छा लगता है। बिल्कुल सख्त, अग्नि समझकर अलग रहना पड़ेगा।
प्रश्नकर्ता : दादा कभी-कभार उल्टी साइड का कॉन्फिडेन्स बढ़ जाता है।
दादाश्री : उसमें चोर नीयत होती है। सख्त नहीं हुआ तो समझना कि यहाँ कमी है अभी। जिससे खुद को नुकसान होता है, उससे यदि दूर नहीं रहे न तो मूर्ख ही कहलाएगा न? और यह तो अधोगति कहलाती है। इस गलती को नहीं चला सकते। विषय-विकार और मृत्यु दोनों एक समान ही हैं।
काटो सख्ती से 'उसे' जिसकी फाइल बन ही चुकी हो, उसके लिए बहुत जोखिम है। उसके प्रति सख्त रहना चाहिए। सामने आ जाए तो आँखें दिखाना, तो वह फाइल डरती रहेगी। फाइल बन जाने के बाद तो बल्कि लोग चप्पल मारते हैं, तो वह फिर से मुँह दिखाना ही भूल जाता