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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : उस घड़ी जब संडास करने बैठी हो, तब देखे तो चंचल रहेगा या नहीं?
प्रश्नकर्ता : नहीं रहेगा। प्रेम टूट जाएगा।
दादाश्री : प्रेम है ही कहाँ यह? केवल साइकलॉजिकल इफेक्ट है। उस समय हमें लपेटते रहना पड़ेगा। ये सीधा लपेटा था, उसे उल्टा लपेटने से निकल जाएगा, खत्म हो जाएगा। 'मेरा, मेरा' करके चिपका था। अब ‘नहीं है मेरा, नहीं है मेरा' करेगा तो चला जाएगा।
अग्नि और 'फाइल' एक से जहाँ आकर्षण होता है, वहाँ जागृत रहो। आकर्षण नहीं हो रहा हो तो हर्ज नहीं है। बार-बार आकर्षण हो रहा हो तो समझना कि यह फाइल है।
प्रश्नकर्ता : कुछ फाइलों के प्रति आकर्षण होता है।
दादाश्री : सावधान रहकर चलना। अपना यह ज्ञान है तो ब्रह्मचर्यव्रत रह सकता है क्योंकि शुद्धात्मा को अलग कर दिया है इसलिए रह सकता है। वर्ना और कहीं नहीं रह सकता। दादा द्वारा दिया गया, 'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा कहते ही वह कम्प्लीट अलग हो जाता है। वह शंका रहित है। बाकी सब जगह शंकावाला।
प्रश्नकर्ता : 'खुद' अलग रहता है इसीलिए यह सब पता चल पाता है कि यह कोई फाइल आई और चंचलता हुई।
दादाश्री : हाँ, पता चलेगा ही न। वह अलग नहीं हुआ होता तो पता नहीं चल पाता, तन्मयाकार ही रहता। पता चलता है, हिल उठा है, ऐसा समझ में आता है। अब सब कैसे करना है, वह भी जानता है, सभी संयोग उसे (समझ में) आते हैं।