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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : वह पता तो चलता है लेकिन फिर भी बारबार विचार आते रहते हैं।
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दादाश्री : हाँ। लेकिन विचार आएँ तो फिर से उन्हें, वे जो विचार आएँ, उन सबको तोड़ना पड़ेगा। जैसे-जैसे आते जाएँ, वैसे-वैसे तोड़ते जाना है, आते जाएँ वैसे-वैसे तोड़ते जाना है। हर एक को देखकर प्रतिक्रमण करना पड़ेगा ।
प्रश्नकर्ता : वह समझ में तो आता है कि कितनी बड़ी गलती की थी !
दादाश्री : लेकिन गलती तो की, थी तभी तो अंदर आया न! एक विचार तक भी आए तो उसे कैसे तोड़ना, उतना आना चाहिए! उसे उसमें पूरा दिन गुज़ारना पड़ेगा, दो-दो घंटे। तब छेदन होगा वर्ना नहीं। उन्हें (कर्म) बाँधते समय कुछ सोचा ही नहीं था न! पूरी रात उल्टा लेटकर फिर पूरी रात विचार करता रहा ।
प्रश्नकर्ता : 'उल्टे लेटकर विचार करते हैं' इसका मतलब समझ में नहीं आया।
दादाश्री : उसे कुछ अट्रैक्टिव लगा इसलिए फिर वहाँ वह उल्टा लेटकर सोचता ही रहता है । बाद में वह रमणता करता रहता है। अब वह तो चली गई तो अब क्यों रमणता कर रहा है ? भाई उल्टा लेटकर रमणता करता है, अंदर वह टेस्ट आता है न एक तरह का । अब यदि रमणता ब्रह्मचर्य में रहे, उससे फिर कार्य ब्रह्मचर्य होगा। पतन कब होता है ? रमणता अब्रह्मचर्य रहे, तब से होता है।
तेरी इस तरह की कोई दखल नहीं है न, थ्री विज़न रहता है न?
प्रश्नकर्ता : फिर भी कभी कभार कच्चा पड़ जाता है। दादाश्री : ऐसा ! उस समय बायें हाथ से दाहिने गाल पर