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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
दादाश्री : वह तो कर्म के उदय आपको खींचते हैं न! अभी तो आपको देखना पड़ेगा कि कर्म के उदय यहाँ खींच रहे हैं। सभी की ओर नहीं खींचते। चार बैठी हों तो एक के प्रति आकृष्ट होता है बाकी पर नहीं। यानी हिसाब है, पहले का, पिछला।
प्रश्नकर्ता : ऑफिस में काम कर रहे हों तब, जब वह व्यक्ति गुज़रे तभी अपनी नज़र ऊपर उठती है।
दादाश्री : हाँ, यानी वहाँ पर हिसाब है। इसलिए वहाँ पर प्रतिक्रमण करते रहना है। अतिक्रमण से वहाँ लिपटा हुआ है और प्रतिक्रमण से तोड़ दो। अतिक्रमण यानी पहले जो दृष्टियाँ की हैं, उनके प्रतिक्रमण करेंगे तो खत्म हो जाएगा।
जब तक दृष्टि में किसी भी चीज़ पर आकर्षण है, तब तक उसे मोह है। वह मोह गया। दर्शनमोह गया, चारित्रमोह रहा। वह तो कुछ देखते ही यदि बदलाव हो जाता हो तो दीवार को देखकर क्यों नहीं होता? बीच में कोई जानवर है, जो ऐसे बदलाव करवाता है। कौन सा जानवर? मोह नामक!
प्रश्नकर्ता : वह तो जितनी खुद की जागृति हो, तब पता चलता है कि अंदर कुछ बदलाव हुआ है, वर्ना कितना कुछ हो जाता है फिर भी पता नहीं चलता कि यह बदलाव हुआ है। पता ही नहीं चलता।
दादाश्री : जिसे भान ही नहीं है, उसे पता कैसे चलेगा? यह क्या हो रहा है? उसका भी भान नहीं है।
आकर्षण और मोह नहीं होने चाहिए। फिर बाकी गुनाह माफ कर देते हैं, ऑवर फ्लो हुआ हो या ऐसा वैसा कुछ हुआ हो तो उसे माफ कर देते हैं हम। हमें ऐसा कुछ नहीं है कि आपको गुनहगार ही बनाना है। हम समझते हैं कि घर में रहकर इस तरह रहना मुश्किल है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन रहा जा सकता है।