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स्पर्श सुख की भ्रामक मान्यता (खं-2-८)
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बिलीफ है, वर्ना दूसरे को तो यों स्पर्श होते ही ज़हर जैसा लगेगा। कई लोग तो इसे छूते तक नहीं है। स्त्री को छूते तक नहीं हैं। ज़हर जैसा लगता है क्योंकि उसने ऐसा भाव किया हैं। पहलेवाले में ऐसा माल भरा हुआ है कि स्पर्श को सुख माना है। इन दोनों के अलग-अलग माल भरे हुए हैं, इसलिए उसे इस जन्म में ऐसा लगता है। ज़हर भी नहीं लगना चाहिए और सुख भी नहीं लगना चाहिए। हमारे जैसा सहज, यों जैसे पुरुषों की तरह हम छूते हैं दूसरों को, उस तरह से रहना चाहिए। विषय में स्त्री दोषित नहीं है। वह अपना दोष है। स्त्री का दोष नहीं है।
प्रश्नकर्ता : 'स्त्री को स्पर्श करने में सुख है' यह जो बिलीफ है, उसे कैसे हटाएँ ?
दादाश्री : वह बिलीफ तो जब दस लोगों ने कहा तो बिलीफ बैठ गई। वहाँ अगर त्यागी बोले होते न तो बिलीफ होती तो भी चली जाती क्योंकि बिलीफ बैठ गई है। सही जगह पर बैठी है या गलत जगह पर? जलेबी तो स्वादिष्ट लगती है, उसमें भी अगर ताज़ा जलेबी हो, स्वादिष्ट लगेगी या नहीं लगेगी? घी की होगी तो!
प्रश्नकर्ता : लगेगी।
दादाश्री : ज्ञानीपुरुष से समझ लेना चाहिए। जबकि इन लोगों से सीखे हो! कवि लोग तो सभी ऐसे तारीफ करते हैं। पैर तो केले के तने जैसे, पैर और फलाने अंग के लिए ऐसा कहते हैं लेकिन ऐसा नहीं सोचता कि अरे! संडास जाए उस समय क्यों साथ में नहीं बैठता? यह तो सभी अपना-अपना गाते हैं। ज्ञानीपुरुष दिखाएँ न, तब अरुचि होती है भीतर।
प्रश्नकर्ता : आपकी ये सारी बातें सही हैं। यह श्रद्धा में भी बैठा है लेकिन फिर भी वर्तन में स्पर्श कर लेते हैं।
दादाश्री : वर्तन में तो यह मान्यता है न रोंग, मान्यता फल दिए बिना जाएगी नहीं न! वह डिस्चार्ज मान्यता है। एक बार मानी हुई